भारतीय संविधान के भाग-III में वर्णित 6 मौलिक अधिकारों में से एक समानता का अधिकार (Rights of Equality) है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार हो और किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। समानता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा और सामाजिक न्याय को बनाए रखने का आधार है।
सरल शब्दों में, समानता का अधिकार Article 14-18 का मतलब है कि हर किसी को, चाहे वह लड़का हो या लड़की, गरीब हो या अमीर, किसी भी जाति या धर्म का हो, एक जैसा सम्मान और अवसर मिलना चाहिए। जैसे – अगर खेल के दौरान केवल कुछ बच्चों को खेलने दिया जाए और बाकी को मना कर दिया जाए, तो यह अनुचित होगा। समानता का अधिकार कहता है कि हर किसी को खेलने का मौका मिलना चाहिए।
Rights of Equality : समानता का अधिकार क्या है?
समानता का अधिकार (Rights of Equality) वह मौलिक अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता, भेदभाव के निषेध, समान अवसर, और जाति-प्रथा या किसी भी प्रकार के असमान व्यवहार से स्वतंत्रता प्रदान करता है। समानता का अधिकार भारत में सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। यह न केवल भेदभाव को समाप्त करता है, बल्कि कमजोर और पिछड़े वर्गों को समानता के साथ सशक्त बनाने का अवसर भी देता है। यह अधिकार भारत को एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज बनाने में मदद करता है।
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उदाहरण – यदि एक बच्चे को उसकी जाति या धर्म के कारण स्कूल में बैठने नहीं दिया जाता, तो यह समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
समानता का अधिकार Article 14 18
समानता का अधिकार (Rights of Equality) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के तहत दिया गया एक मौलिक अधिकार है। यह कानून के समक्ष समानता, भेदभाव के विरुद्ध संरक्षण, और सामाजिक समानता सुनिश्चित करता है। यह अस्पृश्यता, भेदभाव, और अनुचित विशेषाधिकारों को समाप्त कर समान अवसर और न्याय प्रदान करता है। समानता का अधिकार Article 14 18 निम्न है
- अनुच्छेद 14: सभी के लिए कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण।
- अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध।
- अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान अवसर और आरक्षण की अनुमति।
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन और इसे दंडनीय अपराध घोषित करना।
- अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत, सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों को छोड़कर।
समानता का अधिकार Article 14 18 भारतीय संविधान का आधारभूत स्तंभ है, जो समाज में न्याय, निष्पक्षता और समरसता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण
अनुच्छेद 14 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो देश के सभी नागरिकों और गैर-नागरिकों को कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) और समान संरक्षण का अधिकार (Equal Protection of Laws) प्रदान करता है। यह लोकतंत्र और न्याय की बुनियाद है। प्राकृतिक न्याय का सिध्दांत अनुच्छेद -14 में समाहित है।
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अनुच्छेद 14 के दो भागों में देखा जा सकता है एक भाग कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) तथा दूसरा भाग कानूनों का समान संरक्षण (Equal Protection of Laws)।
कानून के समक्ष समानता (Equality Before Law)
कानून के समक्ष समानता इसका अर्थ है कि राज्य के क्षेत्र में सभी व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हों या गैर-नागरिक, कानून की नजर में समान हैं। अर्थात सभी व्यक्तियों के लिए समान विधि लागू होगी विधि के उल्लंघन के बिना किसी व्यक्ति को दण्डित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत ब्रिटेन के अलिखित संविधान से ली गई है।
- यह नकारात्मक अवधारणा है।
- इसका अर्थ है कि देश के हर व्यक्ति को कानून के समक्ष समान अधिकार और दर्जा प्राप्त होगा।
- यह समानता सभी के लिए लागू होती है, चाहे व्यक्ति का पद, धर्म, जाति, लिंग, या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
- किसी व्यक्ति को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नही होंगें।
- प्राकृतिक न्याय का सिध्दांत समानता के अधिकार में निहित है।
कानूनों का समान संरक्षण (Equal Protection of Laws)
यह अमेरिकी संविधान से प्रेरित है और सकारात्मक भेदभाव (Positive Discrimination) की अनुमति देता है, जहां समानता सुनिश्चित करने के लिए असमान लोगों के साथ विशेष व्यवहार किया जा सकता है।
- यह सिद्धांत अमेरिकी संविधान से लिया गया है।
- यह सकारात्मक अवधारणा है।
- इसका मतलब है कि देश में हर व्यक्ति को समान परिस्थितियों में समान तरीके से कानून का संरक्षण मिलेगा।
- इस अनुच्छेद के अनुसार समान लोगों के साथ समान तथा असमान लोगों के साथ असमान विधि लागु की जाएगी। अर्थात् स्थितियों के आधार पर कानून में विभेद किया जा सकता है।
- अनुच्छेद-361 के तहत राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरुध्द उनके कार्यकाल के दौरान किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही न तो आरंभ होगी न ही बने रहगी । राष्ट्रपति एवं राज्यपाल, अपने शक्तियों के प्रयोग और कर्तब्यों के लिए न्यायलय के प्रति जवाबदेह नहीं होंगें।
- राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरुध्द सिविल कार्यवाही हेतु दो माह पूर्व सूचना अनिवार्य।
- राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के खिलाफ परमादेश (Mandamus) जरी नहीं किया जा सकता।
- भारत में सांसदों ( अनुच्छेद -105 ) और विधायकों (अनुच्छेद -194) को भी विशेषाधिकार प्राप्त है। ये किसी बात के लिए न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह नहीं होंगें।
- अनुच्छेद -361 (क) के तहत मिडिया को भी विशेषाधिकार प्राप्त है।
- अनुच्छेद -311 लोकसेवकों को संरक्षण प्रदान करता है।
अनुच्छेद 15 : भेदभाव का प्रतिषेध
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 यह सुनिश्चित करता है कि भारत में कोई भी नागरिक केवल धर्म, जाति, वंश, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव का शिकार ना हो। यह प्रावधान देश में सामाजिक समानता और समान अधिकारों की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अनुच्छेद 15 का मुख्य प्रावधान निम्न है
अनुच्छेद 15 (1) : भेदभाव का निषेध
राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, जाति, वंश, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
जैसे – भाषा या निवास स्थान पर विभेद किया जा सकता है, बशर्ते भेदभाव विवेकसंगत हो।
अनुच्छेद 15 (2) : सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का निषेध
किसी भी नागरिक को केवल धर्म, जाति, वंश, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर निम्नलिखित सुविधाओं के उपयोग से वंचित नहीं किया जाएगा
- दुकानों, सार्वजनिक रेस्तरां, होटलों और मनोरंजन स्थलों तक पहुंच।
- कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों और सार्वजनिक स्थलों के उपयोग का अधिकार।
अनुच्छेद 15 (3) : महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान
इस अनुच्छेद की कोई भी बात राज्य की महिलाओं और बच्चों हेतु विशेष प्रावधान करने से नहीं रोकेगी। जैसे महिलाओं की सुरक्षा और बच्चों की शिक्षा से संबंधित योजनाएं।
- इस अनुच्छेद के तहत संसद द्वारा महिलाओं को घरेलु हिंसा संरक्षण अधि. 2005 पारित किया गया।
- राज्य केवल महिलाओं द्वारा संचालित शिक्षण संसथान की भी स्थापना कार सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार महिलाओं को प्राप्त प्रसूति अवकाश केवल लिंग पर आधारित न होकर विशिष्ट शारीरिक स्थिति पर आधारित है।
अनुच्छेद 15 (4) : पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान
राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (OBC), अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है। यह खंड समाज में समानता स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है। जैसे – मेडिकल व इंजीनियरिंग कालेजों में विभिन्न जातियों / समुदायों हेतु निशित अनुपात में स्थानों को निर्धारित करना।
अनुच्छेद 15 (5) : शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण
इस अनुच्छेद को 93वां सविधान संशोधन 2005 द्वारा शामिल किया गया। इसमे राज्य को यह अधिकार है कि वह शैक्षणिक संस्थानों (सरकारी और निजी) में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू कर सके।
अनुच्छेद 15 (6) : आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण
इस अनुच्छेद को 103वें संविधान संशोधन 2019 में शामिल किया गया। इसके माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 16 : लोक नियोजन में अवसर की समानता।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 विशेष रूप से सरकारी सेवाओं में नियुक्ति, पदोन्नति और भर्ती में समान अवसर और निष्पक्षता की गारंटी देता है। इसके तहत, किसी भी नागरिक को भारतीय राज्य के अधीन सरकारी नौकरी में प्रवेश पाने के लिए समान अवसर मिलते हैं, बशर्ते वह आवश्यक योग्यताओं को पूरा करता हो। अनुच्छेद 16 के मुख्य प्रवधान निम्न है-
अनुच्छेद 16 (1) : नौकरी में समान अवसर
राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी। अर्थात भारतीय राज्य के अधीन किसी भी नागरिक को सरकारी सेवा में नौकरी के लिए समान अवसर मिलेंगे, बशर्ते वह उस पद के लिए निर्धारित योग्यता और शर्तों को पूरा करता हो।
अनुच्छेद 16 (2) : सरकारी सेवा में कुछ आधार पर विभेद
अनुच्छेद 16 (2) यह सुनिश्चित करता है कि धर्म, मूलवंश, जाति, जन्म स्थान के अधार पर नौकरीयों में विभेद नहीं किया जायेगा। अर्थात अगर किसी व्यक्ति ने योग्यता पूरी की है, तो उसे अपनी जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
अनुच्छेद 16 (3) : राज्यों के निवासियों के लिए प्राथमिकता
राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि सरकारी सेवाओं में राज्यों के निवासियों को प्राथमिकता दे सकता है। जब संसद अनुमति दे। राज्य विधानसभाओं को यह अधिकार नहीं दिया गया है।
अनुच्छेद 16 (4) : विशेष वर्गों के लिए आरक्षण
अनुच्छेद 16 (4) में यह प्रावधान है कि अगर राज्य सरकार को लगता है कि किसी विशेष वर्ग, जैसे कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), को सरकारी सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है, तो वह उन वर्गों के लिए आरक्षण नीति लागू कर सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को बराबरी का अवसर प्रदान करना है।
अनुच्छेद 16 (4क) : SC/ST वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण
अनुच्छेद 16 (4क) राज्य सरकारों को यह अधिकार देता है कि वे SC/ST वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था लागू कर सकती हैं। यह प्रावधान राज्य में ऐसे कर्मचारियों के लिए लागू होता है जो पहले से सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। ( 77वें संविधान संशोधन 1995)
अनुच्छेद 16 (5) : आरक्षण का समायोजन
अनुच्छेद 16(5) के तहत, किसी धार्मिक या सम्प्रदायिक संस्था के कार्यकाल से संबधित कोई पदधारी किसी विशिष्ट संप्रदाय का ही हो सकता है। अर्थात राज्य एक व्यक्ति के धर्म या जाति के आधार पर सरकारी पदों पर नियुक्ति करने में आरक्षण लागू कर सकता है, बशर्ते कि यह संविधान द्वारा अनुमत हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह नियुक्ति ठीक तरीके से की जा रही हो।
अनुच्छेद 16 (6) : शासकीय नौकरियों में EWS के लिए आरक्षण
शासकीय नौकरियों में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों को 10% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। संविधान के 103वें संशोधन 2019 द्वारा जोड़ा गया।
अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का उन्मूलन (अन्त)
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता (छुआछूत) के उन्मूलन और इसके किसी भी रूप के प्रतिबंध की बात करता है। यह प्रावधान सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान के तहत शामिल किया गया है।
- यह अनुच्छेद व्यक्ति और राज्य दोनों के विरुध्द उपलब्ध है।
- अस्पृश्यता का अंत किया जाएगा और उसका किसी भी रूप में पालन करना निषिद्ध होगा। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी भी प्रकार की अक्षमता को दंडनीय अपराध घोषित किया जाएगा।
- इस अनुच्छेद के तहत अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति या जन्म के आधार पर अस्पृश्य नहीं माना जा सकता।
- यदि कोई व्यक्ति अस्पृश्यता का पालन करता है, तो उसके खिलाफ कानून के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
- यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति को समाज में समानता का अधिकार मिले और कोई भी व्यक्ति जाति, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव का सामना न करे।
- महात्मा गांधी ने अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन चलाया और इसे समाज से समाप्त करने के लिए “हरिजन आंदोलन” का नेतृत्व किया।
- अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु संसद द्वारा अस्पृश्यता अपराध अधि. 1955 पारित किया गया। जिसे 1976 में संशोधन कर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 रखा गया है।
अनुच्छेद 18 : उपाधियों का अंत
इस अनुच्छेद द्वारा राज्य को उपाधियां प्रदान करने तथा नागरिकों और गैर-नागरिकों को उपाधियाँ ग्रहण करने से निषिध्द किया गया है, सिवाय उन सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों के जो कानून द्वारा दी जाती हैं। अनुच्छेद 18 के प्रमुख प्रावधान निम्न है
अनुच्छेद 18 (1) : राज्य द्वारा नागरिक उपाधियों पर प्रतिबंध
राज्य, सेना या विद्या सम्बन्धी सम्मान के अलावा कोई अन्य उपाधि प्रदान नही करेगा। अर्थात भारत में, राज्य किसी भी नागरिक को “सर”, “राय बहादुर”, “नवाब”, या अन्य सम्मानजनक उपाधि नहीं प्रदान कर सकता। यह समानता के अधिकार को बनाए रखने और एक लोकतांत्रिक समाज में भेदभाव को खत्म करने के लिए आवश्यक है।
अनुच्छेद 18 (2) : विदेशी उपाधियां स्वीकार करने पर प्रतिबंध
भारत का कोई भी नागरिक, चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या आम नागरिक, किसी भी विदेशी देश से कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि भारतीय नागरिकों की निष्ठा केवल भारत के प्रति हो।
अनुच्छेद 18 (3) : विदेशी उपाधियों को सरकार की अनुमति के बिना स्वीकार नहीं किया जा सकता
एक ऐसा व्यक्ति, जो भारत का नागरिक न हो, लेकिन राज्य के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर हो, वह राष्ट्रपति के सहमति के बिना किसी विदेशी राज्य से उपाधि ग्रहण नहीं कर सकता। यह विशेष रूप से सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर लागू होता है।
अनुच्छेद 18 (4) : सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों की अनुमति
सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता।जैसे- सेना के पद (जैसे जनरल, कर्नल) या शैक्षणिक उपाधियां (जैसे डॉक्टर, प्रोफेसर) संविधान के तहत मान्य हैं।
उदहारण
- भारतीय नागरिकों को विदेशी उपाधियां – यदि कोई भारतीय नागरिक ब्रिटिश सरकार से “नाइटहुड” जैसी उपाधि प्राप्त करता है, तो वह इसे स्वीकार नहीं कर सकता।
- सैन्य और शैक्षणिक उपाधियां – डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, या सेना में दिए गए पद इस अनुच्छेद के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं।
- भारत रत्न, पद्म पुरस्कार, और अन्य राष्ट्रीय सम्मान – भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले ये सम्मान “उपाधि” की श्रेणी में नहीं आते।
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समता का अधिकार अनुच्छेद 14-18 सामाजिक न्याय, मानव गरिमा, और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए आधारभूत है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में भेदभाव को समाप्त करना और सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करना है। हालांकि, सामाजिक और आर्थिक असमानता, जातिगत भेदभाव, और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियों को समाप्त करने के लिए इस अधिकार (Rights of Equality) को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। समानता का अधिकार अनुच्छेद 14-18 तभी पूर्ण रूप से प्रभावी होगा जब समाज इसे अपने व्यवहार में अपनाएगा और सभी नागरिकों को समान अवसर और न्याय प्रदान करेगा।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
समानता का अधिकार किसे कहते हैं
समानता का अधिकार का मतलब है कि हर किसी को चाहे वह लड़का हो या लड़की, गरीब हो या अमीर, किसी भी जाति या धर्म का हो, एक जैसा सम्मान और अवसर मिलना चाहिए।
जैसे – अगर खेल के दौरान केवल कुछ बच्चों को खेलने दिया जाए और बाकी को मना कर दिया जाए, तो यह अनुचित होगा। समानता का अधिकार कहता है कि हर किसी को खेलने का मौका मिलना चाहिए।
समानता का अधिकार किस अनुच्छेद में है?
समानता का अधिकार अनुच्छेद 14-18 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्रदान करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार और कानून के प्रति समान सुरक्षा मिले।
अनुच्छेद 17 क्या है?
अनुच्छेद 17 भारतीय संविधान का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो अस्पृश्यता (छुआछूत) के उन्मूलन से संबंधित है। इसका उद्देश्य समाज में समानता स्थापित करना और जातिगत भेदभाव को समाप्त करना है।
समानता का अधिकार कहाँ से लिया गया है?
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार (Right to Equality) को संविधान के निर्माण के दौरान कई विदेशी संविधानों और सिद्धांतों से प्रेरित होकर तैयार किया गया था। समानता का अधिकार निम्नलिखित स्रोतों से लिया गया है – ब्रिटिश संविधान से कानून के समक्ष समानता, अमेरिकी संविधान से कानून का समान संरक्षण, तथा स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत फ्रांसीसी क्रांति के दौरान विकसित हुआ।
- आखिरी अपडेट: 4 मिनट पहले
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