Chhand Kise Kahate Hai: छंद की परिभाषा और प्रकार

Chhand Kise Kahate Hai? छंद की परिभाषा

Chhand Kise Kahate Hai – छंद शब्द चद् धातु से बना है जिनका अर्थ है खुश करना। हिंदी साहित्य के अनुसार अक्षरों की मात्रा, संख्या, गणना गति और यति से संबंधित किसी विषय पर पद्य-रचना को छंद कहा जाता है। या अन्य शब्दों में – जिस शब्द-योजना में वर्णों या मात्राओं और यति-गति का विशेष नियम हो, उसे छंद (Chhand) कहते हैं।

छंद ही वह तत्व है, जो पद्य को गद्य से भिन्न करता है। हिंदी का आधुनिक काव्य गद्य लेखन की विविधता और विपुलता का काल कहलाता है। यहां हमारी विवेचना का विषय कविता है इसलिए कविता और उस में प्रयुक्त छंदों की संक्षिप्त चर्चा ही हमारा अभीष्ट है। कविता मानव मन की अनुभूतियों का मन की सम्वेदनाओं का प्रतिबिंब होती है। तो चलिए जानते है Chhand Kise Kahate Hai? छंद की परिभाषा और उसके प्रकार।

काव्य में छंद का महत्व

  • कविता में छंद के प्रयोग से पाठक या श्रोता के हृदय में सौंदर्य बोध की गहरी अनुभूति होती है।
  • छंदबद्ध कविता को सुगमता से कंठस्थ किया जा सकता है।
  • छंद में यति, गति के सम्यक का निर्वाह से पाठक को सुविधा होती है।
  • मानवीय भावनाओं को झंकृत कर उसके नाद सौंदर्य में वृद्धि करता है।
  • छंद से कविता में सरसता, गेयता के कारण अभिरुचि बढ़ जाती है।

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छंद के प्रमुख अंग

  • वर्ग और मात्रा – किसी अक्षर को बोलने में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्राएं दो प्रकार की होती है – ह्रस्व (लघु) और दीर्घ (गुरु).
  • लघु – अ,इ,उ,ऋ (।)
  • दीर्घ – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ (ऽ)
  • गण – तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। गण 8 होतेे हैं – य माता राज भान स लगा।
  • गति – निश्चित वर्णों या मात्राओं तथा यति से नियंत्रित छंद की लय या प्रवाह को गति कहते हैं।
  • यति – छंद के पढ़ते समय नियमानुसार निश्चित स्थान पर कुछ ठहराव को यति कहते हैं।
  • चरण – पद्य के प्रायः चतुर्थांश को चरण कहते हैं। इसी को पद भी कहा जाता है।
  • तुक – तुक छंद का प्राण है, यह पद्य को गद्य होने से बचाती है। चरणान्त में वर्णों की आवृत्ति को तुक कहते हैं।

छंद के प्रकार

मात्रिक छंद की परिभाषा

वे छंद (Chhand) जिनमें कविता के चरणों में प्रयुक्त मात्राओं को ही आधार मानकर छंद की रचना की जाती है। अर्थात शिल्प की दृष्टि से कविता में कितने चरण है। प्रत्येक चरण में कितनी मात्राओं का विधान है। चरण दो प्रकार के होते हैं:

(अ). समचरण – जहां प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या बराबर हो वह समचरण है। जैसे – चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं।

(ब). विषमचरण – शब्दों में प्रयुक्त यति या विराम के आधार पर चरणों में मात्राओं की संख्या में भिन्नता होती है। जैसे – दोहा, सोरठा आदि। शब्दों में प्रयुक्त वर्णों की संख्या दोहा के प्रथम व तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं और दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएं होती है। अतः यहां विषमचरण का प्रयोग होता है।

वर्णिक छंद की परिभाषा

वर्णिक छंद की परिभाषा – वर्णिक छंद वे छंद कहलाते हैं जहां निर्धारित गणों के अनुरूप वर्णों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि गणों में भी वर्णों की मात्रा को ही आधार माना जाता है लेकिन छंद विधान की दृष्टि से वर्णों का क्रम निश्चित रहता है। तीन वर्णों के समूह गण गणों की संख्या 8 है और उनके वर्णों की मात्राओं का क्रम निम्न प्रकार है:

  • य गण = ISS ( प्रथम मात्रा लघु पुनः दो मात्राएं दीर्घ अथवा गुफा )
  • म गण = ISS ( तीनों वर्णों की मात्राएं क्रमश गुरु )
  • त गण = ISS ( प्रथम दो मात्राएं गुरु और अंतिम एक लघु )
  • र गण = ISS ( प्रथम गुरु मात्रा शेष दोनों लघु व गुरु मात्राएं )
  • ज गण = ISS ( प्रथम व अंतिम मात्राएं लघु व मध्य के गुरु मात्रा )
  • भ गण = ISS ( प्रथम मात्रा गुरु शेष दोनों मात्राएं लघु – लघु )
  • न गण = ISS ( न गण की तीनों मात्राएं क्रमशः लघु – लघु )
  • स गण = ISS ( प्रथम दोनों मात्राएं लघु व अंतिम मात्रा गुरु )
  • लघु मात्रा का संख्या मूल्य एक व गुरु मात्रा का संख्या मूल्य गणना में दो के बराबर होता है।
  • लघु मात्रा का चिन्ह I खड़ी सरल रेखा है।
  • गुरु मात्रा का चिन्ह S अंग्रेजी का एस अक्षर है।

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दोहा (Doha)

दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद (Chhand) है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय।
तेरी मुरली मन हरे, घर अँगना न सुहाय॥

सोरठा (Sortha)

सोरठा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद (Chhand) है। यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।

जो सुमिरत सिधि होई, गननायक करिवर बदन।
करहु अनुग्रह सोई, बुद्धि रासि शुभ-गुन सदन॥

चौपाई (Chaupai)

चौपाई मात्रिक सम छंद (Chhand) का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छंद है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाई छंद का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

बंदउ गुरु पद पदम परागा, सुबात सरस अनुरागा।
अमिय मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भव रुज परिवारु।।

कुंडलियां (Kundliya)

कुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद (Chhand) है। इस छंद के 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में 24 मात्राएँ होती है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है।

कमरी योरे दाम की, बहुतै आवे काम।
खासा मलमल नाफ्ता, उनकर राखै मान।
उनकर राखै मान बंद जहं आउै आवै।
बकुया बांधे मारे राती को झीर बिछावे
कह गिरधर कविराय मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी।

हरिगीतिका (Harigitika)

हरिगीतिका में 16 व 12 मात्राओं का विधान है। इसके चार चरण होते हैं और 16 व 12 पर यति होती है, अंत लघु गुरु का विधान है।

मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती।
भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।

सवैया (Savaiyya)

सवैया मात्रिक छंद (Chhand) है। सवैया में बहुविधता पाई जाती है। यह ब्रजभाषा का सर्वाधिक लोकप्रिय छंद है। इसके चरणों में प्रायः 22 से 26 मात्राओं या वर्णों का विधान रहता है। सवैया में प्राय एक गण के वर्णों  की आवृत्ति होती है और अंत में गुरु या लघु का विधान रहता है।

मानुष हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पशु हों तो कहा बस मेरो चरौ नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरी को जो धरयौ कर छत्र पुरंदर धारण।
जो खग हौं तो बेसरो करौं नित कालिंदी कुंल कदंब की डारन।

अधिक पूछे जाने वाले सवाल

छंद क्या है परिभाषा?

शब्दो में अक्षरों की संख्या, क्रम, मात्रा गणना तथा यति-गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य-रचना छन्द कहलाती है।

मात्रिक छंद के कितने प्रकार के होते हैं?

मात्रिक छंद के तीन भेद हैं: (1). सम मात्रिक (2). अर्द्धसम मात्रिक (3). विषम मात्रिक छंद

छंद कितने प्रकार के होते हैं?

छंद मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं: (1). वार्णिक छंद (2).मात्रिक छंद।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने “छंद की परिभाषा और प्रकार (Chhand Kise Kahate Hai)” को विस्तार से बताया है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। इस लेख के बारे में अपने विचार या सुझाव हमें बताये। इसी तरह के और आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए हमारे वेबसाइट स्टडी डिसकस और सोशल मीडिया यूट्यूब, टेलीग्राम, फेसबुकऔर इन्स्टाग्राम पर फॉलो करे।

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