राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के महान पुरुष थे। वे आज के इस युग की महान विभूति थे। महात्मा गांधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और अहिंसा के प्रयोग से उन्होंने कई वर्षो से गुलाम भारत वर्ष को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराया था। विश्व में यह एकमात्र उदाहरण है कि गांधी जी के सत्याग्रह के सामने अंग्रेजों को भी झुकना पड़ा था। निचे हमने राष्ट्रपिता गांधी जी की निबंध (Mahatma Gandhi essay in Hindi) को 100 शब्द, 300 शब्द, 400 शब्द, 800 शब्द और 1000 शब्दों में बताया है।
महात्मा गांधी का संछिप्त परिचय
पूरा नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
पत्नी का नाम | कस्तूरबा गांधी |
जन्म | 2 अक्टूबर, 1869 |
संतान | मनिलाल, हरिलाल, रामदास और देवदास |
योगदान | भारत की स्वतंत्रता |
मृत्यु | 30 जनवरी, 1948 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
महात्मा गांधी पर निबंध 100 शब्द | Mahatma Gandhi Essay in Hindi 100 Words
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधीजी ने भारत की स्वतंत्रा का बहुत अहम योगदान दिया था। गांधीजी हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलते थे और वह अन्य लोगों से भी आशा करते थे की वे भी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चले। सन 1930 में गांधीजी ने पैदल चलकर दांडी यात्रा करके नमक सत्याग्रह किया। लोग गांधीजी को प्यार से बापू कहकर पुकारते है। इन्होने अपनी वकालत की पढ़ाई लंदन से पूरी की थी। बापू अंग्रेजों के लिए काफी बड़ी मुश्किल बने हुए थे। आजादी में बापू के योगदान के कारण उन्हे राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है।गांधी जी चरखा चलाकर सूत बनाते थे और उसी से बनी धोती पहना करते थे। वे हमेशा साधारण जीवन जीते थे।
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Mahatma Gandhi Essay in Hindi 300 Words | महात्मा गांधी पर निबंध 300 शब्द
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी तथा माता का नाम पुतली बाई था। महात्मा गांधी के पिता राजकोट के दिवान थे। आस्था में लीन माता और क्षेत्र के स्थित जैन धर्म के परंपराओं के कारण गांधी जी के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी कहते थे आत्मा की शुद्धि के लिए उपवास करना चाहिए। इनका विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ था।
बचपन से ही गांधी जी को पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर से ही संपन्न हुई है और हाईस्कूल की परिक्षा इन्होंने राजकोट से पास किया। मैट्रीक के लिए वह अहमदाबाद चले गए। कुछ वर्ष बाद वकालत की पढ़ाई के लिए गांधी जी लंदन चले गए। महात्मा गांधी का यह मानना था भारतीय शिक्षा सरकार के नहीं अपितु समाज के अधिन है। इसलिए महात्मा गांधी भारतीय शिक्षा को ‘द ब्यूटिफुल ट्री’ कहा करते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान रहा। भारत का हर नागरिक शिक्षित हो यही उनकी इच्छा थी। गांधी जी का मूल मंत्र ‘शोषण विहिन समाज की स्थापना’ करना था।
7 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए यह उनका सपना था और शिक्षा का मातृभाषा में होनी चाहिए। शिक्षा बालक के मानवीय गुणों का विकास करता है। गांधीजी को बचपन में लोग मंद बुद्धि समझते थे। पर आगे चलकर इन्होंने भारतीय शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्द | Mahatma Gandhi Essay in Hindi 400 Words
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता राजकोट के दीवान थे। उनकी माता एक धार्मिक महिला थीं। स्वतन्त्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने और देश को स्वतन्त्र कराने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण उनको राष्ट्रपिता कहा गया। यह उपाधि सर्वप्रथम उन्हें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने दी।
भारत देश की आजादी में मूलभूत भूमिका निभाने तथा सभी को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले गांधी जी को सर्वप्रथम बापू कहकर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया था। आज दशकों बाद भी पुरे विश्व में उन्हें बापू के नाम से ही पुकारा जाता है।
महात्मा गांधी मैट्रिक पास करने के पश्चात् इंग्लैण्ड चले गए जहाँ उन्होंने न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। इसके बाद इन्होंने अधिवक्ता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया। गांधी जी एक बैरिस्टर बनकर भारत वापस आए और मुम्बई में अधिवक्ता के रूप में कार्य करने लगे।
महात्मा गांधी को उनके एक भारतीय मित्र ने कानूनी सलाह लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया। और यहीं से उनके राजनैतिक जीवन की शुरूआत हुई। दक्षिण अफ्रीका पहुँचकर गांधी जी को एक अलग प्रकार का अनुभव हुआ और उन्होंने वहाँ देखा कि, किस प्रकार से भारतीयों के साथ भेद-भाव किया जा रहा है।
एक बार गांधीजी जब ट्रेन में सफ़र कर रहे थे तो एक गोरे ने ट्रेन से उतार दिया क्योंकि गांधीजी उस समय प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे जबकि उस श्रेणी में केवल गोरे लोग यात्रा करना अपना अधिकार समझते थे। गांधीजी ने तभी से प्रण लिया कि वह काले और भारतीयों के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने वहाँ रहने वाले भारतीयों के जीवन सुधारने के लिए कई आन्दोलन किये। दक्षिण अफ्रीका में आन्दोलन के दौरान उन्हें सत्य और अहिंसा का महत्त्व समझ में आया।
जब वह भारत वापस आए तब उन्होंने वही स्थिति भारत में देखा जो वह दक्षिण अफ्रीका में देखकर आए थे। सन 1920 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया और अंग्रेजों को ललकारा। सन 1930 में गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन की स्थापना की और 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया।
गांधी जी अपने आन्दोलन के दौरान वह कई बार जेल गए। अन्तत: उन्हें सफलता हाथ लगी और 1947 में भारत देश आजाद हुआ। पर दु:ख की बात यह है की महात्मा जब संध्या प्रार्थना के लिए जा रहे थे तब नाथुराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने 30 जनवरी सन 1948 को गोली मारकर गांधी जी की हत्या कर दी और वह इस दुनिया से हमेशा के लिए चले गए।
भारत के सभी महान सपूतों में महात्मा गांधी का नाम सबसे आगे है। वह वह व्यक्ति था जिसने दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्तियों में से एक, ब्रिटिश राज का अहिंसा के अपने सिद्धांत के माध्यम से कठिन साहस और दृढ़ता के साथ सामना किया, वास्तव में एक ताकत थी। उनकी मृत्यु के बाद भी, उन्हें भारत और विदेशों के अनगिनत लोगों के लिए एक आदर्श माना जाता है।
महात्मा गांधी पर निबंध 800 शब्द | Mahatma Gandhi Essay in Hindi 800 Words
महात्मा गांधी का जीवन परिचय – महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 को गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी और उनकी माता का नाम पुतली बाई था। गांधी जी अपने पिता की चौथी पत्नी के अंतिम संतान थे। गांधी जी की माता पुतलीबाई एक महान धार्मिक महिला थी।
महात्मा गांधी जब 13 वर्ष के थे तभी उनके माता-पिता द्वारा उनका विवाह करवा दिया गया था। महात्मा गांधी की पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी था।
महात्मा गांधी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गुजरात से की और आगे के अध्ययन के लिए वह लंदन चले गए जहां उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की। उसके बाद वकालत की पढ़ाई करने के लिए गांधी जी इंग्लैंड चले गए। महात्मा गांधी ने सन् 1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी कर वे भारत लौट आए फिर उन्होंने मुंबई में रहकर अपनी वकालत शुरू कि लेकिन उन्हें इस कार्य में सफलता नहीं मिल पाई।
फिर वह मुकदमे की पैरवी करने दक्षिण अफ्रीका चले गए जहां उन्होंने भारतीयों के पक्ष में अंग्रेजों का डटकर विरोध किया और गांधी जी इस कार्य में सफल हुए। इस सफलता का अनुभव लेकर महात्मा गांधी गोपाल कृष्ण गोखले के निवेदन पर भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से सन 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने अपने अनुभव से जो भी सीखा उससे लोगों को जागरूक कराने के लिए अपना जीवन मानव सेवा में समर्पित कर दिया।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत – महात्मा गांधी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के दक्षिण अफ्रीका चले गए। और वहां पर उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगो और दूसरे काले रंग के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।
एक बार जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में जब ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सफ़र कर रहे थे तो उन्हें ट्रेन के डिब्बे से धक्का मारकर बाहर निकाल दिया गया था जबकि उनके पास ट्रेन के प्रथम श्रेणी की टिकट भी मौजूद थी। गोरे लोगो का मानना था की प्रथम श्रेणी मे केवल उच्च-वर्ग ही यात्रा कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं उन्हें वहां के कई होटलों में भी अन्दर घुसने से मना कर दिया गया।
यह रंगभेद, जातपात गांधी जी को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने अब राजनीति में जाने का निर्णय लिया जिस कारण वह भारतीयों और अन्य लोगों पर हो रहे रंगभेद को खत्म कर सकें। रंग-भेद को जड़ से ख़त्म करने के लिए 6 नवंबर सन 1913 को गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में “द ग्रेट मार्च” का नेतृत्व किया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान – सन 1919-1948 तक महात्मा गांधी इस प्रकार छाए रहे कि इस समय को भारत के इतिहास का गांधी युग कहा जाता है। महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका एक मंत्र था कि हिंसा के माध्यम से अहिंसा से बाहर निकला जा सकता है। महात्मा गांधी श्री गोपाल कृष्ण गोखले के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो हुए थे। गुजरात और बिहार में चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन में महात्मा गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
असहयोग आंदोलन – जलियांवाला बाग नरसंहार से गाँधी जी को यह मालूम हो गया था की ब्रिटिश अंग्रेज सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अतः उन्होंने सितंबर 1920 से फरवरी 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। लाखों भारतीय के सहयोग मिलने से यह आंदोलन अत्यधिक सफल रहा और इससे अंग्रेज सरकार को भारी झटका लगा।
नमक सत्याग्रह – 12 मार्च सन 1930 से साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला गया। यह आंदोलन अंग्रेज सरकार के नमक पर एकाधिकार के खिलाफ छेड़ा गया। गांधी जी के द्वारा किये गए आंदोलनों में यह सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन था।
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दलित आंदोलन – गांधी जी द्वारा सन 1932 में अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना हुई और उन्होंने छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरूआत 8 मई सन 1933 में की।
भारत छोड़ो आंदोलन – अंग्रेज साम्राज्य से भारत को जल्दी आज़ाद करने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त सन 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया गया।
चंपारण सत्याग्रह – ब्रिटिश ज़मींदार गरीब किसानो से अत्यधिक कम मूल्य पर जबरन नील की खेती कराते थे। जिससे किसानों में भूख से मरने की स्थिति पैदा हो गई थी। यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले से सन 1917 में प्रारंभ किया गया। और यह गांधी जी की भारत में पहली राजनैतिक जीत थी।
उपसंहार – गांधी जी केवल एक नेता ही नहीं बल्कि वह एक पवित्र निस्वार्थ और उच्च विचारों वाले धार्मिक व्यक्ति भी थे। सत्य और अहिंसा उनके मूल मंत्र थे इसी से उन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा से बिना बल प्रयोग किए शांतिपूर्ण तरीके से अनेक आंदोलन में सफलता प्राप्त किया। गांधी जी सदैव खादी अपने हाथ से बुना हुआ खादी वस्त्र ही पहनते थे. वह भारत से सामाजिक बुराइयां और गरीबी को निकालना चाहते थे आज सम्पूर्ण विश्व महात्मा गांधी का सम्मान करता है तथा सभी लोग उनके आदर्शों पर चलने का प्रयत्न करते हैं।
महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्द | Mahatma Gandhi Essay in Hindi 1000 Words
महात्मा गांधी का नाम भारत के सभी महान सपूतों में सबसे आगे है। वह ऐसे व्यक्ति थे जिसने दुनिया की सबसे बड़ी महा-शक्तियों में से एक, ब्रिटिश राज का अहिंसा के अपने सिद्धांत के माध्यम से कठिन साहस और दृढ़ता के साथ सामना किया। उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें भारत और विदेशों के कई देशो में एक आदर्श माना जाता है।
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 को भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के एक छोटे से शहर पोरबंदर में हुआ था। जो उस समय काठियावाड़ में एक छोटा सा राज्य था। उनका जन्म वैश्य जाति के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। गांधी जी के माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करमचंद गांधी था। पिता मोहनदास गांधी पोरबंदर के एक प्राथमिक विद्यालय में गए, जहाँ उन्हें गुणन सारणी में महारत हासिल करने में कठिनाई हुई। गांधी जी के दो भाई और एक बहन थी और वह सबसे छोटा था। जब गांधी जी स्कूल में थे, तभी उसकी शादी 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से हुई।
मोहनदास कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए और सन 1890 में एक वकील के रूप में भारत आये। अपने देश आने के तुरंत बाद, उन्हें दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी की ओर से एक मुकदमे के सिलसिले में उनकी ओर से दक्षिण अफ्रीका जाने का प्रस्ताव दिया गया। वहाँ उन्होंने देखा कि भारतीयों और अफ्रीकी काले लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। गांधी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें ट्रेन में प्रथम श्रेणी के डिब्बे से उतार दिया गया क्योंकि वे गोरे नहीं थे। उस घटना ने मोहनदास गांधी को अपनी कायरता से बाहर निकलने और अपने अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए मजबूर किया।
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपना प्रवास बढ़ाया और उस बिल का विरोध किया जिसने भारतीयों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया गया था। गांधी जी 21 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका में रहे। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा वहां भारतीयों के साथ किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। उनके महान प्रयासों ने अंग्रेजों को वहां रहने वाले भारतीयों को और अधिक स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर किया। गांधी जी वहां एक महान राजनीतिक नेता के रूप में उभरे।
जनवरी 1914 में गांधी जी ने अपने लोगों की सेवा करने और अपने देश में स्वतंत्रता लाने की केवल एक महत्वाकांक्षा के साथ भारत लौटे। एक वर्ष तक बहुत भटकने के बाद, वह अंततः अहमदाबाद के बाहरी इलाके में साबरमती नदी के तट पर बस गए। जहाँ उन्होंने सन 1915 में एक आश्रम की स्थापना की। उन्होंने इसका नाम सत्याग्रह आश्रम रखा। वहां उन्होंने लोगों की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। सत्य और अहिंसा, ब्रह्मचर्य, चोरी न करने की प्रतिज्ञा का प्रचार किया। जब रॉलेट एक्ट पारित किया गया जिसने भारतीयों की नागरिक स्वतंत्रता को नकार दिया।
गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे रहे और कुछ ही वर्षों में वे स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन के निर्विवाद नेता बन गए। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए गांधी ने तीन जन आंदोलन शुरू किया। इस तीन आंदोलनों ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी और लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में एक साथ लाया। गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह को अपने प्रमुख हथियार के रूप में वकालत की।
गांधी के मार्गदर्शन और प्रभाव ने कई महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए सशक्त और प्रोत्साहित किया। कई बार उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल के पीछे रखा गया। लेकिन राष्ट्रीय स्वतंत्रता की उनकी खोज से कोई भी उन्हें रोक नहीं सका। उनके नेतृत्व में सभी बाधाओं के बावजूद भारतीयों ने स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई। अंग्रेजों ने महसूस किया कि वे अब भारत में नहीं रह सकते हैं और 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर हुए।
गांधी जी की विरासत हमारे देश और दुनिया के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने अध्यात्म को राजनीति में लाया और इसे घृणा और हिंसा से रहित महान और अधिक मानवीय बनाया। वे एक महान नेता और समाज सुधारक थे। वे सत्यवादी, धर्मपरायण, और धार्मिक थे। उन्होंने दुनिया भर के कई महान नेताओं को बिना हिंसा के अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रभावित किया।
अस्पृश्यता को दूर करने, हिंदू-मुस्लिम एकता, पिछड़े वर्गों के उत्थान, सामाजिक विकास के केंद्र के रूप में गांव का विकास, सामाजिक स्वतंत्रता पर जोर, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग आदि पर उनका जोर उनकी स्थायी विरासत रही है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को गांधीवादी युग भी कहा जाता है। वे सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखते थे। वह लोकतंत्र के हिमायती थे और तानाशाही शासन के अत्यधिक विरोधी थे।
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एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए गांधी लंबे समय तक जीवित नहीं रहे। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी, जब वह एक शाम की प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे। इस प्रकार महान व्यक्ति के जीवन का अंत हो गया। गांधी भले ही हमारे बीच नहीं रहे लेकिन आज भी उनके विचार हम देशवाशियों के दिलों में जिन्दा है। आज महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपने महान आदर्शों और सर्वोच्च बलिदान से स्वतंत्र भारत की सच्ची नींव रखी थी। उन्हें प्यार से बापू कहकर पुकारते थे। 2 अक्टूबर को उनका जन्मदिन पूरे देश में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है और उनकी छवि भारतीय मुद्रा नोटों पर दिखाई देती है।
उपसंहार – गांधी जी ने भारत को पराधीनता से मुक्ति दिलाने के लिए जी-जान लगाकर संघर्ष किया और सफल भी हुए। उन्होंने समाज की गलत सोचों का निवारण किया और उन्हें प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। गांधी जी के इस महान कार्यों की वजह से उन्हें देश में राष्ट्रपिता (फादर ऑफ़ नेशन) की उपाधि दी गयी है। उन्होंने सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ा और देश को अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए हर संभव कोशिश की।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
महात्मा गांधी का जन्म कहाँ हुआ था?
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 को भारत के गुजरात राज्य के पोरबन्दर ज़िले में स्थित एक नगर हुआ था।
भारत छोड़ो आंदोलन कब और क्यों हुआ?
भारत छोड़ो आन्दोलन 8 अगस्त सन 1942 को द्वितीय विश्व-युद्ध के समय आरम्भ हुआ था। इस आन्दोलन का उद्देश्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। भारत छोड़ो आन्दोलन को महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। करो या मरो इस आन्दोलन का नारा था।
महात्मा गांधी के बेटे का क्या नाम था?
महात्मा गांधी के चार बेटे थे उनके नाम है : मणिलाल गांधी, हरिलाल मोहनदास गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी था।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है?
सबसे पहले रविंद्रनाथ टैगोर ने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा माना और उनके साथ-साथ पूरा देश गांधी जी को महात्मा मानने लगा। महात्मा गांधी अपने आचरण से महात्मा होने की पात्रता बार-बार अर्जित भी करते रहे। सन 1944 में सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए उन्हें राष्ट्रपिता का नाम दिया था।
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- आखिरी अपडेट: 6 मिनट पहले
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