Proverbs in Hindi: लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ 290+ उदाहरण

लोकोक्तियाँ (Proverbs in Hindi) बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में आम लोगो के अनुभव का सार होता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार का ज्ञात नहीं होता है। आज इस लेख में हम लोकोक्तियाँ (Lokoktiyan) के बारे में जानेंगे। लोकोक्तियाँ क्या होती हैं? मुहावरे और लोकोक्ति में क्या अंतर है? और विभिन्न परीक्षाओं हेतु महत्वपूर्ण उदाहरण।

Proverbs in Hindi | लोकोक्तियाँ की परिभाषा

लोकोक्ति शब्द ‘लोक + उक्ति’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – लोक में प्रचलित उक्ति या कथन। लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में उपजे ऐसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र, वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं इनसे किसी न किसी कहानी का जुड़ाव होता है।

उदाहरण

अधजल गगरी छलकत जाय = जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं वह उसका अधिक दिखावा या आडम्बर करता है।
प्रयोग – राकेश बारहवीं पास करके स्वयं को बहुत बड़ा विद्वान समझ रहा है। ये तो वही बात हुई कि अधजल गगरी छलकत जाय।

लोकोक्तियाँ और मुहावरे में अंतर

लोकोक्तियाँ मुहावरे
(1) लोकोक्तियाँ विशेष अर्थ देती हैं, परन्तु उनका कोशगत अर्थ भी बना रहता है।(1) मुहावरे अपना कोशगत या शाब्दिक अर्थ छोड़कर नया अर्थ देते हैं।
(2) लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता।
जैसे – चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात।
(2) मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण वाक्य नहीं। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता है तब इन्हें संरचनागत पूर्णता प्राप्त होती है।
जैसे – अपना उल्लू सीधा करना।
(3) लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।(3) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है। उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है।
(4) लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।(4) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।
(5) लोकोक्तियाँ में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता।
जैसे – अधजल गगरी छलकत जाए।
(5) वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के कारण परिवर्तन होता है।
जैसे – आँखें पथरा जाना।
(6) लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में प्रयुक्त किया जाता है।(6) मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं।
(7) लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं।
जैसे – तर्कपूर्ण
आम के आम गुठलियों के दाम।
तर्कशून्य
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।
(7) मुहावरे तर्क पर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जैसे
घाव पर नमक छिड़कना।
छाती पर मूँग दलना।
ओखली में सिर देना।
(8) कुछ लोकोक्तियाँ बहुत अधिक बनावटी-पन दर्शाती है।(8) मुहावरे बहुत ज्यादा बनावटी नहीं होते।

लोकोक्तियाँ (Lokoktiyan) का वाक्य में प्रयोग

लोकोक्ति का वाक्य में ज्यों का त्यों उपयोग होता है। मुहावरे का उपयोग क्रिया के अनुसार बदल जाता है लेकिन लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इसे बिना बदलाव के रखा जाता है। कभी-कभी काल के अनुसार परिवर्तन सम्भव है।

जैसे : अंधा पीसे कुत्ते खायें।
प्रयोग : नगर पालिका की किराये पर संचालित दुकानों में डी. एम को अंधा पीसे कुत्ते खायें की हालत देखने को मिली।

लोकोक्तियाँ (Lokoktiyan) की विशेषताएं

  • हास्य और मनोरंजन  में प्रयोग होता है।
  • लोकोक्तियों के अर्थ सभी समाज में एक से रहते हैं।
  • धार्मिक एवं नैतिक उपदेश रूपी प्रवृत्ति।
  • समाज का सही मार्गदर्शन।
  • जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती है।
  • अनुभव पर आधारित एवं जीवनोपयोगी बातों के बारे में सुझाव देती है।

लोकोक्तियाँ के उदाहरण (Lokoktiyan with Meaning)

निचे कुछ प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ (Proverbs in Hindi) व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये गए है जो विभिन्न परीक्षाओ हेतु महत्वपूर्ण है

(अ, आ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ के उदाहरण | Proverbs in Hindi)

(1). अन्धों में काना राजा = मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
प्रयोग – मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही, इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।

(2). अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता = अकेला आदमी बिना दूसरों के सहयोग के कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।
प्रयोग – मैं जानता हूँ कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ फिर भी जो काम बड़ों द्वारा करने को कहा गया है, वह जरूर करूँगा।

(3). अधजल गगरी छलकत जाय = जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं, वह उसका प्रदर्शन या आडम्बर करता है।
प्रयोग – रमेश बारहवीं पास करके स्वयं को बहुत बड़ा विद्वान समझ रहा है। ये तो वही बात हुई कि अधजल गगरी छलकत जाय।

(4). अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत = समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है।
प्रयोग – सारे साल राम मस्ती करता रहा, अध्यापकों और अभिभावक की एक न सुनी। अब बैठकर रो रहा है। ठीक ही कहा गया है- अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

(5). अन्धा क्या चाहे दो आँखें = मनचाही बात हो जाना।
प्रयोग – अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।

(7). अंधी पीसे, कुत्ते खायें = मूर्खों की कमाई व्यर्थ में नष्ट हो जाती है।
प्रयोग – रजनी अपने आपको बुद्धिमान समझती है, किन्तु उसका काम अंधी पीसे, कुत्ते खायें वाला है।

(8). अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा = जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।
प्रयोग – मनोज की कंपनी में चपरासी और मैनेजर का वेतन बराबर है, वहाँ तो कहावत चरितार्थ होती है कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।

(9). अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना = मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना व्यर्थ है।
प्रयोग – मुन्ना को समझाना तो अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना वाली बात है।

(10). अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे = बुद्धिहीन, किन्तु धनवान
प्रयोग – सेठ जी तो अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे हैं।

(11). अक्ल बड़ी या भैंस = बुद्धि शारीरिक शक्ति से अधिक श्रेष्ठ होती है।
प्रयोग – ये कहानी तो सबने पढ़ी ही होगी कि खरगोश ने अपनी अक्ल से शेर को कुएँ में कुदवा दिया था। यहाँ यह मशहूर कहावत सही है कि अक्ल बड़ी या भैंस।

(12). अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग = कोई काम नियम-कायदे से न करना।
प्रयोग – राधा के घर में तो जो जिसके मन में जो आता, वह करता है। इसी को कहते हैं- अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग।

(13). अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है = अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना।
प्रयोग – पंकज अपने मोहल्ले में बहादुरी दिखा रहा था। उसके लिए ये कहावत सही है-अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।

(14). अपनी पगड़ी अपने हाथ = अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।
प्रयोग – झगड़ा बड़ जाने पर विवेक ने श्रीनाथ जी से कहा- आप यहाँ से चले जाइए, क्योंकि अपनी पगड़ी अपने हाथ होती है।

(15). अपने मुँह मियाँ मिट्ठू = अपनी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करने वाला।
प्रयोग – रामू हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनता है।

(16). अस्सी की आमद, चौरासी खर्च = आमदनी से अधिक खर्च
प्रयोग – राजू के तो अस्सी की आमद, चौरासी खर्च हैं। इसलिए उसके वेतन में घर का खर्च नहीं चलता।

(17). ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर = काम करने पर उतारू होना
प्रयोग – जब मैनें देश सेवा करने की ठान ही ली है, तब जेल जाने से क्या डरना? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।

(18). आ बैल मुझे मार = स्वयं मुसीबत मोल लेना
प्रयोग – लोग मोहन की जान के पीछे पड़े हुए हैं और वह आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमता रहता है। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।

(19). आँख का अन्धा नाम नयनसुख = गुण के विरुद्ध नाम होना।
प्रयोग – एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनसुख।

(20). आगे नाथ न पीछे पगहा = किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना
प्रयोग – सोहन घूमेगा-फिरेगा नहीं तो और क्या करेगा क्योंकि उसके न आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।

(21). आम के आम गुठलियों के दाम = अधिक लाभ
प्रयोग – सब प्रकार की पुस्तकें ‘साहित्य भवन’ से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ इसी को तो कहते हैं।

(22). आगे कुआँ, पीछे खाई = दोनों तरफ विपत्ति या परेशानी होना
प्रयोग – सुरेश के सामने तब आगे कुआँ, पीछे खाई वाली बात हो गई, जब बदमाशों ने कहा कि या तो वह गोली खाए या सारा सामान उनको दे दे।

(23). आज हमारी, कल तुम्हारी = जीवन में विपत्ति सब पर आती है।
प्रयोग – यह नहीं भूलना चाहिए कि समय सदा बदलता रहता है- आज हमारी, कल तुम्हारी।

(24). आप काज, महा काज = अपना काम स्वयं करने से ठीक होता है।
प्रयोग – राजू अपना काम दूसरों पर नहीं छोड़ता। उसे स्वयं करता है, क्योंकि उसका विश्वास है कि ‘आप काज, महा काज’।

(25). आये थे हरि-भजन को, ओटन लगे कपास = आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में लग जाना।
प्रयोग – सेठ हेमचंद अपने परिवार को लेकर गए तो थे मसूरी प्रकृति का आनंद उठाने। पर लालच ने पीछा न छोड़ा और वहाँ जाकर भी सारा समय होटल में बैठे रहे और फोन पर धंधे की बातों में ही लगे रहे। ऐसे लोगों के लिए ही कहा गया है, आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।

(26). आसमान से गिरे खजूर में अटके = एक मुसीबत खत्म न हो उससे पहले दूसरी मुसीबत आ जाए।
प्रयोग – पिछले माह सेठ रामरतन को पुलिस ने काला बाजारी के जुर्म में पकड़ा था। अभी उस झंझट से मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि कल उनके यहाँ इनकम टैक्स वालों की रेड पड़ गई, अब बेचारे सेठजी का क्या होगा क्योंकि उनकी हालत तो आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली है।

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(इ, ई से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ के उदाहरण | Proverbs in Hindi)

(27). इधर कुआँ और उधर खाई = हर तरफ विपत्ति होना
प्रयोग – कुछ विषयों पर न बोलने में भी बुराई है और बोलने में भी, ऐसे में तो एक ही कहावत सही है -इधर कुआँ और उधर खाई।

(28). ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया = ईश्वर की बातें विचित्र हैं।
प्रयोग – कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

(29). ईंट की लेनी, पत्थर की देनी = बदला चुकाना
प्रयोग – अशोक ईंट की लेनी, पत्थर की देनी वाले स्वभाव का आदमी है।

(30). इस हाथ दे, उस हाथ ले = लेने का देना
प्रयोग – प्रिंसीपल ने मेरे पिता जी से कहा, ‘आप मेरे भाई को अपने ऑफिस में नौकरी पर रख लीजिए, मैं आपके बेटे को अपने स्कूल में एडमीशन दे दूँगा।’ इसे कहते हैं इस हाथ दे, उस हाथ ले।

(31). इतनी-सी जान, गज भर की जुबान = बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करना
प्रयोग – चार साल की बच्ची जब बड़ी-बड़ी बातें करने लगी तो दादाजी बोले- इतनी सी जान, गज भर की जुबान।

(उ, ऊ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)


(32). उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = अपराधी निरपराध को डाँटेे
प्रयोग – एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

(33). उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई = इज्जत जाने पर डर किसका
प्रयोग – जब लोगों ने रमन को बिरादरी से ख़ारिज कर दिया है, तो अब वह खुलेआम आवारागर्दी कर रहा है- ‘उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई’।

(34). उल्टे बांस बरेली को = जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो, उसे वहां ले जाना।
प्रयोग – जब राजू अनाज शहर से गाँव ले जाने लगा तो उसके पिताजी ने कहा कि ये तो उल्टे बांस बरेली वाली बात है। वहाँ क्या अनाज की कोई कमी है।

(35). उसी का जूता उसी का सिर = किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना।
प्रयोग – जब चोर पुलिस की बेल्ट से पुलिस को ही मारने लगा तो सबने यही कहा कि ये तो उसी का जूता उसी का सिर वाली बात हो गई।

(36). ऊँची दुकान फीके पकवान = जिसका नाम अधिक हो, पर गुण कम हो।
प्रयोग – उस कंपनी का नाम ही नाम है, गुण तो कुछ भी नहीं है। बस ‘ऊँची दुकान फीके पकवान’ है।

(37). ऊँट के मुँह में जीरा = जरूरत के अनुसार चीज न होना।
प्रयोग – विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000 रुपये ही दिए। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।

(38). ऊधो का लेना न माधो का देना = केवल अपने काम से काम रखना।
प्रयोग – प्रोफेसर साहब तो बस अध्ययन और अध्यापन में लगे रहते हैं। गुटबन्दी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं- ऊधो का लेना न माधो का देना।

(ए, ऐ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(39). एक पन्थ दो काज = एक काम से दूसरा काम हो जाना
प्रयोग – राम को दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।

(40). एक हाथ से ताली नहीं बजती = झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
प्रयोग – आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।

(41). एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा = कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य बुरी संगत में पड़ कर और बिगड़ जाते है।
प्रयोग – कालू तो पहले से ही बिगड़ा हुआ था अब उसने आवारा लोगों का साथ और कर लिया है- एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।

(42). एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी = गलत काम करके आँख दिखाना।
प्रयोग – एक तो उसने मेरी किताब चुरा ली, ऊपर से आँखें दिखा रहा है। इसी को कहते हैं- ‘एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी।’

(43). एक अनार सौ बीमार = जिस चीज के बहुत चाहने वाले हों।
प्रयोग – अभिषेक जहाँ कम्प्यूटर सीखता है वहाँ कम्प्यूटर एक है और सीखने वाले बीस हैं- ये तो वही बात हुई कि एक अनार सौ बीमार।

(44). एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है = एक खराब चीज सारी चीजों को खराब कर देती है।
प्रयोग – मेरी कक्षा में रोहन नाम का एक छात्र था जो छात्रों की किताबें चुरा लेता था। इससे पूरी कक्षा बदनाम हो गई। कहते भी हैं- ‘एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।’

(45). एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती = एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते।
प्रयोग – किशनलाल ने दो शादियाँ की थी। दोनों पत्नियाँ में रोज झगड़ा होता था। तंग आकर किशनलाल एक दिन घर छोड़कर चला गया। बेचारा क्या करता एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती, यह बात उसे कौन बताता?



(46). एक अकेला, दो ग्यारह = संगठन में शक्ति होती है।
प्रयोग – पिताजी ने दोनों बेटों को समझाते हुए कहा, यदि तुम दोनों मिलकर व्यापार करोगे तो दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति होगी। हमेशा याद रखना, ‘एक अकेला, और दो ग्यारह’ होते हैं।

(47). एक ही थैली के चट्टे-बट्टे = एक ही प्रवृत्ति के लोग
प्रयोग – रोहन और मोहन पर विश्वास करना खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।

(48). ऐरा-गैरा नत्थू खैरा = मामूली आदमी
प्रयोग- कोई ‘ऐरा-गैरा नत्थू खैरा’ महेश के ऑंफिस के अन्दर नहीं जा सकता।

(48). ऐरे गैरे पंच कल्याण = ऐसे लोग जिनके कहीं कोई इज्जत न हो।
प्रयोग- पंचों की सभा में ऐरे गैरे पंच कल्याण का क्या काम।

(ओ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(49). ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर = कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता।
प्रयोग – बेचारी शांति देवी ने जब ओखली में सिर दे ही दिया है तब मूसलों से डरकर भी क्या कर लेगी।

(50). ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती = किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो।
प्रयोग – किसी के देने से कब तक गुजारा होगा, हमें यह जान लेना चाहिए कि ‘ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती’।

(51). ओछे की प्रीति, बालू की भीति = दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है।
प्रयोग – घटिया आदमी का साथ छोड़ देना चाहिए। क्योंकि ओछे की प्रीति, बालू की भीति के समान होती है’।

(क, ख से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(52). कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली = उच्च और साधारण की तुलना कैसी
प्रयोग – रोहन सेठ करोड़ीमल का बेटा है। मनीष एक मजदूर का बेटा। दोनों का कोई मेल नहीं है क्योंकि कहा जाता है कि कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।

(53). कंगाली में आटा गीला = परेशानी पर परेशानी आना
प्रयोग – पिता जी की बीमारी की वजह से घर में वैसे ही आर्थिक तंगी चल रही है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया। इसे कहते हैं- कंगाली में आटा गीला।

(54). कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा = बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना।
प्रयोग – शर्मा जी ने ऐसी किताब लिखी है कि किताब में कहीं कुछ मेल नहीं खाता। उन्होंने तो वही हाल किया है- ‘कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा’।

(55). काला अक्षर भैंस बराबर = बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति
प्रयोग – कालू तो अख़बार भी नहीं पढ़ सकता, वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।

(55). कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना = जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहना।
प्रयोग – वह सच्चा साधु है, जो कुछ पाता है वही खाकर संतुष्ट हो जाता है- कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना।

(56). करे कोई, भरे कोई = अपराध कोई करे, दण्ड किसी और को मिले।
प्रयोग – चोरी रामू ने की और पकड़ा गया राजू। इसी को कहते हैं- ‘करे कोई, भरे कोई’।

(57). कागा चले हंस की चाल = गुणहीन व्यक्ति का गुणवान व्यक्ति की भांति व्यवहार करना।
प्रयोग – राजू गँवार है, परन्तु जब सूटबूट पहन कर निकलता है तो जैंटलमैन लगता है। इसी को कहते हैं- ‘कागा चले हंस की चाल’।

(58). कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है = अपने घर में निर्बल भी बलवान या बहादुर होता है।
प्रयोग – जब रवि ने कालू को अपनी गली में मारा तो उसने कहा कि कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है, तू मेरे मोहल्ले में आना।

(59). कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते = विद्वान लोग मूर्खों और ओछों की बातों की परवाह नहीं करते।
प्रयोग – लोगों ने गाँधीजी की कटु आलोचनाएँ की, पर वे अपने सिद्धांत पर अटल रहे, डरे नहीं। कहावत भी है- ‘ कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते’।

(60). काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती = चालाकी से एक ही बार काम निकलता है।
प्रयोग – एक बार तो मेहुल मुझसे झूठ बोल कर कर्जा ले गया लेकिन हर बार वह मुझे मुर्ख नहीं बना सकता। ध्यान रखो, ‘काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती’।

(61). कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता = मूर्ख पर समझाने का असर नहीं होता।
प्रयोग – पूरे दिन सुशील बाँसुरी बजाता रहता है लेकिन यदि उससे कभी कोई फरमाइश करे तो नखरे करता है। किसी ने सच कहा है कि ‘कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता’।

(62). काम का न काज का, दुश्मन अनाज का = किसी मतलब का न होना।
प्रयोग – सूरजभान कोई काम-वाम तो करता नहीं, बड़े भाई के यहाँ पड़े-पड़े टाइम पास कर रहा है। ऐसे लोग को तो ‘काम का न काज का, दुश्मन अनाज का’ कहा जाता है।

(63). कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास = धन के अभाव में जीवन में कोई आकर्षण नहीं।
प्रयोग – करीम मियाँ की जबसे नौकरी छूटी है, हमेशा जेब खाली रहती है। इसलिए वे कहीं आते-जाते तक नहीं। कहीं भी उनका मन नहीं लगता। किसी ने सच कहा है, ‘कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास’।

(64). खोदा पहाड़ निकली चुहिया = बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ
प्रयोग – बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

(65). खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे = किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना।
प्रयोग – दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई, जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

(66). खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है = एक को देखकर दूसरा बालक या व्यक्ति भी बिगड़ जाता है।
प्रयोग – रोहन अन्य बालकों को देखकर बिगड़ गया है। सच ही है- ‘खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है’।

(67). खरी मजूरी चोखा काम = मजदूरी के तुरन्त बाद नकद पैसे मिलना।
प्रयोग – रवि ने मालिक से कहा कि उसे अपनी मजदूरी के पैसे तुरन्त चाहिए- ‘खरी मजूरी चोखा काम’।

(68). खाली दिमाग शैतान का घर = बेकार बैठने से तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं।
प्रयोग – राजू बोला कि मैं कभी खाली नहीं रहता हूँ, क्योंकि ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ होता है।

(69). खुदा गंजे को नाख़ून न दे = नाकाबिल को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए।
प्रयोग – अशोक ने कहा कि यदि मैं तहसीलदार बन जाऊँ तो तुम्हारा चबूतरा खुदवा डालूँगा। उसके पड़ोसी ने कहा कि ‘खुदा गंजे को नाख़ून न दे’।

(70). खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी = एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ।
प्रयोग – महेश और नरेश दोनों घनिष्ठ मित्र हैं और दोनों ही अपाहिज हैं। उन्हें देख कर गोपाल ने कहा- ‘खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी’।

(72). खग जाने खग ही की भाषा = साथी की बात साथी समझ लेता है।
प्रयोग – मैं जब भी परेशान होता हूँ मेरा दोस्त विकास पता नहीं कैसे समझ लेता है। सच बात है कि ‘खग जाने खग ही की भाषा’।

(73). खून सिर चढ़कर बोलता है = पाप स्वतः सामने आ जाता है।
प्रयोग – रामेश्वर धूर्त और मक्कार है और उसकी मक्कारी और धूर्तता, उसके कामों से सब लोगों के सामने आ जाएगी। कब तक इसकी काली करतूतें छुपायेगा। एक-न-एक दिन तो ‘खून सिर पर चढ़कर बोलेगा’।

(ग, घ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(74). गागर में सागर भरना = कम शब्दों में बहुत कुछ कहना
प्रयोग – बिहारी कवि अपने दोहों में गागर में सागर भरने के लिए प्रसिद्ध हैं।

(75). गया वक्त फिर हाथ नहीं आता = जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता।
प्रयोग – अध्यापक ने बताया कि हमें अपना समय व्यर्थ नहीं खोना चाहिए, क्योंकि गया वक्त फिर हाथ नहीं आता।

(76). गरज पड़ने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है = मुसीबत में हमें छोटे-छोटे लोगों की भी खुशामद करनी पड़ती है।
प्रयोग – मनीष के पास टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तो उसने एक चपरासी से अनुनय-विनय करके पैसे इकट्ठे किए। कहावत भी है कि ‘गरज पड़ने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है’।

(77). गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं = जो बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करते हैं, वे काम कम करते हैं।
प्रयोग – बड़बोले रवि से श्याम ने कहा कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं।

(78). गीदड़ की शामत आए तो वह शहर की तरफ भागता है = जब विपत्ति आती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
प्रयोग – एक तो गौरव की कंपनी के मैनेजर ने मजदूरों को रविवार की छुट्टी नहीं दी, इसके अलावा उनकी मजदूरी भी काटनी शुरू कर दी। फलतः हड़ताल हो गई और मैनेजर को इस्तीफा देना पड़ा। सच ही कहा है- ‘गीदड़ की शामत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है’।

(79). गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक़्कर हो गया = शिष्य का गुरु से अधिक उन्नति करना।
प्रयोग – उसने मुझसे अंग्रेजी पढ़ना सीखा और आज वह मुझसे अच्छी अंग्रेजी बोलता है, यह तो वही मिसाल हुई- ‘गुरु गुड़ ही रहा और चेला शक़्कर हो गया’।

(80). गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है = अपराधियों के साथ निर्दोष व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं।
प्रयोग – मैंने कालू से कहा था कि चोर-डाकुओं के साथ मत रहो। लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। इसी कारण आज जेल काट रहा है। कहावत भी है- ‘गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है’।

(81). गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमनादास = सिद्धांतहीन मनुष्य, अवसरवादी
प्रयोग – आजकल के नेताओं का क्या भरोसा, सभी अवसरवादी हैं। जिस पार्टी की सरकार बनती है, उसी में शामिल हो जाते हैं। इनके लिए यह कहावत उपयुक्त है कि गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमनादास।

(82). गरीब की जोरू, सबकी भाभी = कमजोर पर सब अधिकार जताते हैं।
प्रयोग – सारे परिवार में सुबोध ही कम पैसे वाला है, इसलिए परिवार के सारे सदस्य उसी पर हुक्म चलाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि गरीब की जोरू, सबकी भाभी होती है।

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(83). गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे = भले ही किसी को कुछ न दें पर मधुर व्यवहार करें।
प्रयोग – यदि आप किसी का अच्छा नहीं कर सकते तो बुरा भी मत करें। कहावत भी है – गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे।

(84). घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध = जो मनुष्य बहुत निकटस्थ या परिचित होता है, उसकी योग्यता को न देखकर बाहर वाले की योग्यता देखना।
प्रयोग – यहाँ स्वामी विवेकानंद को लोग इतना नहीं मानते जितना अमेरिका में मानते हैं। सच ही है- ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध’।

(85). घर की मुर्गी दाल बराबर = घर की वस्तु या व्यक्ति को कोई महत्व न देना।
प्रयोग – पं. दीनदयाल हमारे गाँव के बड़े प्रकांड पंडित हैं। बाहर उनका बड़ा सम्मान होता है, परन्तु गाँव के लोग उनका जरा भी आदर नहीं करते। लोकोक्ति प्रसिद्ध है- ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’।

(86). घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने = झूठा दिखावा करना।
प्रयोग – रामू निर्धन है, फिर भी ऐसा बन-ठन कर निकलता है जैसे लखपति हो। ऐसे ही लोगों के लिए कहते हैं- ‘घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने’।

(87). घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या = मेहनताना या पारिश्रमिक माँगने में संकोच नहीं करना चाहिए।
प्रयोग – राजू ने दो महीने काम किया है। तनख्वाह न माँगे तो क्या करे – ‘घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या’?

(च, छ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(88). चिराग तले अँधेरा = अपनी बुराई नहीं दिखती
प्रयोग – मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि ‘चिराग तले अँधेरा।’

(89). चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात = सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना।
प्रयोग – आज की तरक्की पर कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए, कब क्या हो जाए कोई कुछ नहीं कह सकता। सही बात है- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।

(90). चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय = अत्यधिक कंजूसी करना।
प्रयोग – जेबकतरे ने सौ रुपए उड़ा लिए तो कुछ नहीं, पर मुन्ना ने मुझे पाँच रुपए उधार नहीं दिए। ये तो वही बात हुई कि चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।

(91). चिकने घड़े पर पानी नहीं ठरहता = बेशर्म आदमी पर किसी बात का कोई असर नहीं होता।
प्रयोग – रामू बहुत निर्लज्ज आदमी है। मैंने उसे बहुत समझाया, परन्तु उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कहावत भी है कि ‘चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता’।

(92). चील के घोंसले में मांस कहाँ = किसी व्यक्ति से ऐसी वस्तु की प्राप्त करने की आशा करना, जो उसके पास न हो।
प्रयोग – मैंने सोचा था कि राजू के घर लड्डू खाने को मिलेंगे, पर चील के घोंसले में मांस कहाँ से मिलता।

(93). चोर के पैर नहीं होते = चोर चोरी करते वक्त जरा-सी आहट से डरकर भाग जाता है।
प्रयोग – जब चोरों ने देखा कि घरवाले जाग गए हैं, तब वे बिना कुछ चुराए ही उसके घर से भाग गए, क्योंकि ‘चोर के पैर नहीं होते’।

(94). चोर-चोर मौसेरे भाई = एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्दी मेल हो जाता है।
प्रयोग – राजनीति में कुछ असामाजिक तत्वों के कारण अपराध और राजनीति दोनों चोर-चोर मौसेरे भाई लगते हैं।

(95). चोरी और सीना जोरी = अपराध करके अकड़ना
प्रयोग – रवि एक तो स्कूल देर से पहुँचा, ऊपर से बहस भी करने लगा, यह चोरी और सीना जोरी करने पर अध्यापक ने उसे हाथ ऊपर करके खड़े होने की सजा दी।


(96). चाँद पर थूका, मुँह पर गिरा = सज्जन की बुराई करने से अपनी ही बेइज्जती होती है।
प्रयोग – भले लोगों की बुराई करोगे तो तुम खुद ही बदनाम होगे। जो चाँद पर थूकता है, थूक उसी के मुँह पर गिरता है।

(97). छछूंदर के सिर में चमेली का तेल = किसी व्यक्ति के पास ऐसी वस्तु हो जो कि उसके योग्य न हो।
प्रयोग – रामू मिडिल पास है फिर भी उसकी सरकारी नौकरी लग गई, इसी को कहते हैं- ‘छछूंदर के सिर में चमेली का तेल’।

(98). छोटा मुँह बड़ी बात = कम उम्र या अनुभव वाले मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना।
प्रयोग – किशन तो हमेशा छोटा मुँह बड़ी बात करता है।

(99). छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह = जब बड़ा छोटे से अधिक शैतान हो।
प्रयोग – राजू का छोटा भाई तो गाली देकर चुप हो गया, लेकिन राजू तो लड़ने को तैयार हो गया। उसे देखकर मुझे यही कहना पड़ा- ‘छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह’।

(ज, झ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(101). जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ = परिश्रम का फल अवश्य मिलता है।
प्रयोग – एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल हो जाता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि ‘जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ’।

(102). जैसी करनी वैसी भरनी = कर्म के अनुसार फल मिलता है।
प्रयोग – राधा ने समय पर प्रोजेक्ट नहीं दिखाया और उसे उसमें शून्य अंक प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जैसी करनी वैसी भरनी।

(103). जिसकी लाठी उसकी भैंस = बलवान की ही जीत होती है।
प्रयोग – सरपंच ने जिसे चाहा उसे बीज दिया। बेचारे किसान कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं- जिसकी लाठी उसकी भैंस।

(104). जंगल में मोर नाचा, किसने देखा = ऐसे स्थान में कोई अपना गुण दिखाए जहाँ कोई देखने वाला न हो।
प्रयोग – रवि ने रामू से कहा कि आप चलकर शहर में रहिए, यहाँ गाँव में आपकी विद्या की कोई कद्र नहीं। इस पर रामू ने कहा – ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा’।

(105). जब चने थे तब दांत न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं = जब धन था तब बच्चे न थे, जब बच्चे हुए तब धन नहीं है।
प्रयोग – रामू काका कहते हैं कि हम पहले बड़े अमीर थे, पर उस समय खाने वाला कोई नहीं था और अब खाने वाले हुए तब धन नहीं है। ये तो वही बात हुई- ‘जब चने थे तब दांत न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं’।

(106). जब तक जीना, तब तक सीना = जब तक मनुष्य जीवित है तब तक उसे कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता है।
प्रयोग – मेरी माँ हमेशा कहती हैं कि वे जब तक जिंदा हैं तब तक काम करेंगी। उनका तो यही सिद्धांत है- ‘जब तक जीना, तब तक सीना’।

(107). जब तक सांस तब तक आस = जब तक मनुष्य जीवित है तब तक आशा बनी रहती है।
प्रयोग – रामू काका ने अपने जीवन में आखिरी दम तक हिम्मत नहीं हारी; कहावत भी है- ‘ जब तक सांस तब तक आस’।

(108). जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का = जल्दी करने से काम बिगड़ जाता है और शांति से काम ठीक होता है।
प्रयोग – राजू रामू को हर काम को जल्दी करने को कहता है। शायद वह या नहीं जानता – ‘जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का’ होता हैं।

(109). जहाँ चाह, वहाँ राह = जब किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा होती है, तो उसे उसका साधन भी मिल ही जाता है।
प्रयोग – रामेश्वर फ़िल्म बनाना चाहता था तो उसे प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मिल ही गए, कहते भी हैं- ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’।

(110). जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा = अभागे मनुष्य को हर जगह दुःख ही दुःख मिलता है।
प्रयोग – बेचारा गरीब राजू दावत में तब पहुँचा, जब भोज समाप्त हो गया। इसी को कहते हैं- ‘जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा’।

(111). जाका कोड़ा, ताका घोड़ा = जिसके पास शक्ति होती है, उसी की जीत होती है।
प्रयोग – मंत्री जी अपने सारे निजी काम सत्ता के बल पर कराते हैं, कहते भी हैं- ‘जाका कोड़ा, ताका घोड़ा’।

(112). जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई = जिस मनुष्य पर कभी दुःख न पड़ा हो, वह दूसरों का दुःख क्या समझे।
प्रयोग – दादी ने मुझसे कहा- बेटा, तुम पुरुष हो। नारी के दुःख को तुम कभी समझ ही न सकोगे। ‘जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’।

(113). जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा = जो हर क्षण सावधान रहता है, उसे ही लाभ होता है।
प्रयोग – रामू बहुत सतर्क रहता है, इसलिए उसको कभी हानि नहीं होती और तुमको बराबर हानि ही हानि होती है। कहते भी हैं- ‘जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा’।

(114). जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम = बिना जान-पहचान के किसी से भी संबंध जोड़कर बातचीत करना।
प्रयोग – मेरे पास एक आदमी आकर जब जबरदस्ती खुद को मेरा मित्र बताने लगा तो मैंने उससे कहा- ‘जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम’।

(115). जान है तो जहान है = संसार में जान सबसे प्यारी वस्तु है।
प्रयोग – रामू काका ने मुझसे कहा कि ‘ जान है तो जहान है’। मैं पहले अपना स्वास्थ्य देखूँ, काम बाद में होता रहेगा।

(116). जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा = जितना अधिक रुपया खर्च करेंगे, उतनी ही अच्छी वस्तु मिलेगी।
प्रयोग – विवेक ने कम पैसों के चक्कर में घटिया पंखा ले लिया, वह चार दिन भी नहीं चला। कहावत भी है- ‘ जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा’।

(117). जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ = आदमी को अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार ही कोई काम करना चाहिए।
प्रयोग – रोहन हमेशा आमदनी से अधिक खर्च करता है और बाद में पैसे उधार लेता फिरता है। इस पर माँ ने कहा कि आदमी की जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए।

(118). जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना = जिस व्यक्ति के आश्रय में रहना, उसी को हानि पहुँचाना।
प्रयोग – शांति जिस थाली में खा रही है, उसी में छेद कर रही है। जिसने उसकी सहायता की, उसी को छल रही है।

(119). जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै = जिसको जिस काम का अभ्यास और अनुभव होता है, वह उसे सरलता से कर लेता है। गैर-अनुभवी आदमी उसे नहीं कर सकता।
प्रयोग – जब राहुल ने खुद दीवार बनानी शुरू की तो वह गिर पड़ी। वह नहीं जानता था- ‘जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै’।

(120). जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ = जब किसी के द्वारा पाला-पोसा हुआ व्यक्ति उसी को आँखें दिखाए।
प्रयोग – ये क्या पता था कि राजू कभी उन्हीं को आँख दिखाएगा जिसने उसे पाला है। ये तो वही बात हुई- ‘जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ’।

(121). जैसा दाम, वैसा काम = जितनी अच्छी मजदूरी दी जाएगी, उतना ही अच्छा काम होगा।
प्रयोग – जब मालिक ने बढ़ई से कहा कि वह सामान ठीक से नहीं बना रहा है तो बढ़ई ने उत्तर दिया- बाबू जी, जैसा दाम वैसा काम, आप मुझे भी तो बहुत कम दे रहे है।

(122). जैसा देश, वैसा वेश = जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों-नीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
प्रयोग – सफलता उसे ही प्राप्त होती है जो समय के साथ चलता है। कहते भी हैं- ‘ जैसा देश, वैसा वेश’।

(123). जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं = जो लोग बहुत शेखी बघारते हैं, वे बहुत अधिक काम नहीं करते।
प्रयोग – अशोक जब बड़ी-बड़ी डींग हाँकने लगा तो सुनील बोल पड़ा- ‘जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं’।

(124). जल में रहकर मगरमच्छ से बैर = जिसके सहारे रहे, उसी से दुश्मनी करना।
प्रयोग – जिस स्कूल में नौकरी करती हो, उसी स्कूल के डायरेक्टर का विरोध करती हो। किसी भी दिन नौकरी से निकाल देगा। ध्यान रखो। जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता।

(125). जाको राखै साइयाँ, मार सकै ना कोय = जिसका रक्षक ईश्वर है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
प्रयोग – कैसा चमत्कार हुआ। बस खड्डे में जा गिरी पर किसी मुसाफिर को चोट तक न आई। सच है, ‘जाको राखै साइयाँ, मार सकै ना कोय’।

(126). झट मंगनी पट ब्याह = किसी काम का जल्दी से हो जाना।
प्रयोग – अभी तो मोहन ने मकान की नींव डाली थी और अभी उसे बनवा कर उसमें रहने भी लगा। ये तो उसने ‘झट मंगनी पट ब्याह’ वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया।

(127). झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला = अंत में सच्चे आदमी की ही जीत होती है।
प्रयोग – किसी आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि- ‘झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला’ होता है।

(128). झोपड़ी में रह के महलों के सपने देखे = अपनी सीमा से अधिक पाने की इच्छा करना।
प्रयोग – मोहनलाल के बेटे ने थर्ड डिवीजन में बी० ए० पास किया है और चाहता है कि किसी कंपनी में सीधा मैनेजर बन जाए। भाई! झोपड़ी में रह के, महलों के सपने देखना अक्लमंदी नहीं है।

(ट, ठ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(129). टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई = थोड़े ही खर्च में किसी के चरित्र को जान लेना।
प्रयोग – जब रमेश ने पैसे वापस नहीं किए तो सोहन ने सोच लिया कि अब वह उसे दोबारा उधार नहीं देगा- ‘टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई’।

(130). टुकड़े दे-दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला = कृतघ्न व्यक्ति
प्रयोग – जिसने रामू को पाला आज नौकरी लगने पर वह उन्हें ही आँख दिखा रहा है। ठीक ही कहा है- ‘टुकड़े दे-दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला’।

(131). ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है = शांत प्रकृति वाला मनुष्य क्रोधी मनुष्य को हरा देता है।
प्रयोग – जब भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को लात मारी, लेकिन उनके यह कहने पर कि आपके पैर में चोट तो नहीं लगी, भृगु स्वयं लज्जित हो गए। ठीक ही कहा है- ‘ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है’।

(132). ठेस लगे, बुद्धि बढ़े = हानि मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है।
प्रयोग – राजेश ने व्यापार में बहुत क्षति उठाई है, तब वह सफल हुआ है। ठीक ही कहते हैं- ‘ठेस लगे, बुद्धि बढ़े’।

(ड, ढ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(133). डरा सो मरा = डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
प्रयोग – रामू उस जेबकतरे के चाकू से डर गया, वरना वह जेबकतरा पकड़ा जाता। कहते भी हैं- ‘जो डरा सो मरा’।

(134). डूबते को तिनके का सहारा = विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
प्रयोग – संकट के समय रमेश को जब मुन्ना दिखा तो उसे इस बात से आशा की किरण दिखाई दी कि ‘डूबते को तिनके का सहारा’।

(135). डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई = थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना।
प्रयोग – मुन्ना के पास केवल पचास आदमियों के खिलाने की सामर्थ्य थी, तब उसने यह सब व्यर्थ का आडम्बर क्यों रचा? यह तो वही हाल हुआ- ‘डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई’।

(136). ढाक के वही तीन पात = परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना।
प्रयोग – अध्यापक ने रामू को इतना समझाया कि वह सिगरेट पीना छोड़ दे, पर परिणाम ‘ढाक के वही तीन पात’, और एक दिन रामू के मुँह में कैंसर हो गया।

(त, थ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(137). तेल तिलों से ही निकलता है = यदि कोई आदमी किसी मामले में कुछ खर्च करता है, तो वह फायदा उस मामले से ही निकाल लेता है।
प्रयोग – जब नौकर ने कमीशन माँगा तो दुकानदार ने कीमत सवाई कर दी। आखिर, भाई, ‘तेल तिलों से ही निकलता है’।

(138). तेल देखो, तेल की धार देखो = किसी कार्य का परिणाम देखने की बात करना।
प्रयोग – रामू बोला- ‘तेल देखो, तेल की धार देखो’, घबराते क्यों हो?

(139). तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले = जब एक व्यक्ति कुछ खर्च कर रहा हो और दूसरा उसे देख कर ईर्ष्या करे।
प्रयोग – मालिक कर्मचारियों को जब कुछ देना चाहता है, तो मैनेजर को बहुत ईर्ष्या होती है। ये तो वही बात हुई- ‘तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले’।

(140). ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती = प्रेम या लड़ाई एकतरफा नहीं होती।
प्रयोग – अध्यापक तो पढ़ाना चाहते हैं, पर छात्र ही न पढ़े तो वे क्या करें, कहते भी हैं- ‘ ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती’।

(141). तीन में न तेरह में = जिसकी पूछ न हो।
प्रयोग – रामू वहाँ किस हैसियत से जाएगा। वहाँ उसकी कोई नहीं सुनेगा, क्योंकि वह ‘तीन में न तेरह में’।

(142). तबेले की बला बंदर के सिर = दोष किसी का, सजा किसी और को।
प्रयोग – चोरी तो की थी सुरेंद्र ने और झूठी शिकायत के आधार पर अध्यापक ने सजा दी महेश को। क्या कहें, यह तो वही बात हुई कि तबेले की बला बंदर के सिर पड़ गई।

(143). तुरंत दान महाकल्यान = समय रहते किया गया कार्य उपयोगी साबित होता है।
प्रयोग – राम ने श्याम से कहा -अच्छा लड़का मिल गया है, तो जल्दी से तिथि निकलवाकर बहन की शादी कर डालो। इंतजार करने में पता नहीं कौन-सी अड़चन कहाँ से आ जाए। शुभ कार्य में ‘तुरंत दान महाकल्यान’ ही जरूरी है।

(144). तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर = आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए
प्रयोग – बेटी के विवाह में झूठी शान की खातिर माहेश्वर ने कर्जा ले लिया और अब कर्जा न चुका पाने के कारण मकान गिरवी रखना पड़ा। बुजुर्गो ने इसलिए कहा है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर’।

(145). थोथा चना, बाजे घना = वह व्यक्ति जो गुण और विद्या कम होने पर भी आडम्बर करे।
प्रयोग – हाईस्कूल में दो बार फेल हो चुका रामू बात कर रहा था कि उसे सब कुछ याद है और वह इंटर के छात्रों को भी पढ़ा सकता है। ये तो वही बात हुई- ‘थोथा चना, बाजे घना’।

(146). थका ऊँट सराय तके = दिनभर काम करने के बाद मजदूर को घर जाने की सूझती है।
प्रयोग – दिनभर काम करने के बाद राजू घर जाने के लिए चलने लगा। ठीक ही है- ‘थका ऊँट सराय तके’।

(द, ध से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi )

(147). दाल-भात में मूसलचन्द = दो व्यक्तियों के काम की बातों में तीसरे आदमी का हस्तक्षेप करना
प्रयोग – दो व्यक्तियों की बातचीत में, ‘दाल-भात में मूसलचन्द’ की तरह कूदने से अपनी ही प्रतिष्ठा कम होती है।

(148). दीवारों के भी कान होते हैं = गुप्त परामर्श एकांत में धीरे बोलकर करना चाहिए।
प्रयोग – श्याम ने मोहन से कहा कि जरा धीरे बोलो, क्या जाने कोई सुन रहा हो, क्योंकि ‘ दीवारों के भी कान होते हैं’।

(149). दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है = जिस व्यक्ति से लाभ होता है, उसकी कड़वी बातें भी सुननी पड़ती हैं।
प्रयोग – कमाऊ बेटा है, लेकिन कभी-कभी झगड़ा कर बैठता है। अरे भाई, ‘दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है’।

(150). दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है = एक बार धोखा खाने के बाद बहुत सोच-विचार कर काम करना।
प्रयोग – पिछली बार एक दिन की गैरहाजिरी में राजू को दफ्तर से जवाब मिला था, इसलिए अब वह देरी से जाने से भी डरता है, क्योंकि ‘दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है’।

(151). दूध का दूध और पानी का पानी = सच्चा न्याय
प्रयोग – कल पंचों ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।

(152). दूधो नहाओ, पूतो फलो = आशीर्वाद देना
प्रयोग – दादी बहू से आशीष के भाव से बोली, ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’।

(153). दूर के ढोल सुहावने लगते हैं = दूर के व्यक्ति अथवा वस्तुएँ अच्छी मालूम पड़ती हैं।
प्रयोग – मोहन के पास ज्यादा पैसा नहीं है। गाँव का सबसे बड़ा आदमी है तो क्या हुआ- ‘दूर के ढोल सुहावने लगते हैं’।

(154). दोनों हाथों में लड्डू होना = दोनों तरफ लाभ होना।
प्रयोग – अब तो रोहन ने दुकान भी खोल ली, नौकरी तो वह करता ही था अतः अब उसके दोनों हाथों में लड्डू हैं।

(155). दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया = रुपैया-पैसा ही सब कुछ है।
प्रयोग – आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता। आजकल तो ‘दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’।

(156). देखे ऊँट किस करवट बैठता है? = देखें क्या फैसला होता है?
प्रयोग – किस पार्टी की सरकार बनेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। वोटों की गिनती के बाद ही तय होगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।

(157). धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का = जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो।
प्रयोग – गाँव से आया रामू दिल्ली में आकर धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जैसा हो गया है।

(158). धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे = बलवान पर वश न चले तो निर्धन पर गुस्सा निकालना।
प्रयोग – रमेश अपने साहब के सामने तो गिड़गिड़ाता रहता है और चपरासी पर रौब डांटता है- ‘धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे’।

(न से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)


(159). नाच न जाने आँगन टेढ़ा = काम न जानना और बहाना बनाना।
प्रयोग – सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या? कहा है: ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा।’

(160). न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी = झगड़े को जड़ से नष्ट कर देना।
प्रयोग – इस एक खिलौने पर ही बच्चों में रोजाना झगड़ा होता है। इसे उठाकर क्यों नहीं फ़ेंक देते- ‘न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी’।

(161). न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी = असंभव शर्ते रखना।
प्रयोग – राजू ने कहा- यदि आप मुझे 5000 रुपये मासिक व्यय दें तो मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने जाऊँगा। पिताजी ने कहा- ‘न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी’।

(162). नौ नगद, न तेरह उधार = उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता है।
प्रयोग – प्रेम किसी को भी उधार नहीं देता उसका तो एक ही सिद्धांत है – ‘नौ नगद, न तेरह उधार’।

(163). न आगे नाथ न पीछे पगहा = जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो।
प्रयोग – जज साहब अकेले ही थे- ‘न आगे नाथ न पीछे पगहा’।

(164). न आव देखा न ताव = बिना सोचे-समझे काम करना।
प्रयोग – उसने ‘न आव देखा न ताव’ झट रामू को थप्पड़ मार दिया।

(165). न ईंट डालो, न छींटे पड़ें = यदि तुम किसी को छेड़ोगे, तो तुम्हें दुर्वचन अवश्य सुनने पड़ेंगे।
प्रयोग – केशव न ईंट डालता, न छींटे पड़ते, उसने पागल को छेड़ा तो उसे पत्थर खाना पड़ा।

(166). न नामलेवा न पानी देवा = जिसका संसार में कोई न हो।
प्रयोग – एक बार पंकज के गाँव में प्लेग फैल गया। उसके घर के सब लोग मर गए। अब ‘न कोई नामलेवा है और न पानी देवा’।

(167). नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा = एक दरिद्र किसी को क्या दे सकता है।
प्रयोग – रामू ने कहा- हम तो खुद गरीब हैं, हम चंदा कहाँ से देंगे- ‘नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा’।

(168). नया नौ दिन पुराना सौ दिन = नई चीजों की अपेक्षा पुरानी चीजों का अधिक महत्व होता है।
प्रयोग – बड़े-बड़े डॉक्टर आ गए हैं, लेकिन मैं तो उन्हीं पुराने वैद्य जी के पास जाऊँगा, क्योंकि ‘ नया नौ दिन पुराना सौ दिन’।

(169). नादान की दोस्ती जी का जंजाल = मूर्ख की मित्रता बड़ी नुकसानदायक होती है।
प्रयोग – कालू जैसे मूर्ख से दोस्ती करना तो नादान की दोस्ती जी का जंजाल है।

(170). नाम बड़ा और दर्शन छोटे = नाम बहुत हो परन्तु गुण कम या बिल्कुल नहीं हों।
प्रयोग – लखपति बुआ ने विदा लेते समय भतीजों को बस एक-एक रुपया दिया। ये तो वही बात हुई- ‘नाम बड़ा और दर्शन छोटे’।

(171). नेकी और पूछ-पूछ = भलाई करने में संकोच कैसा।
प्रयोग – डॉक्टर साहब सब मरीजों को दवा मुफ़्त देने की जब पूछने लगे तो मरीज बोले- ‘नेकी और पूछ-पूछ’।

(172). नेकी कर, दरिया में डाल = उपकार करते समय बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए।
प्रयोग – श्यामजी ने उत्तेजित होकर कहा- मियां साहब, उपकार अहसान के लिए नहीं किया जाता, नेकी करके दरिया में डाल देना चाहिए।

(173). नौ दिन चले अढ़ाई कोस = बहुत सुस्ती से काम करना
प्रयोग – राजू ने दस महीने में मात्र एक पाठ याद किया है। यह तो वही बात हुई- ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’।

(174). नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली = पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना।
प्रयोग – कालू कितना बदमाश था, अब वृद्ध हो जाने पर वह धर्मात्मा बन रहा है- ये तो नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली वाली बात है।

(175). न लेना एक न देना दो = कोई संबंध न रखना।
प्रयोग – भाई साहब का बड़ा बेटा गलत सोहबत में पड़ गया है और भाई साहब उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। हमें क्या? भुगतेंगे खुद ही। हमें तो उस लड़के से न लेना एक न देना दो।

(176). नानी के आगे ननिहाल की बातें = अपने से अधिक जानकारी रखने वाले के सामने जानकारी की शेखी बघारना।
प्रयोग – कंप्यूटर के बारे में जो कुछ तुम बता रहे हो मेरा छोटा बेटा तुमसे अधिक जानकारी रखता है। तुम्हारी इज्जत करता है इसलिए चुप है। ध्यान रखो नानी के आगे ननिहाल की बातें करना शोभा नहीं देता।

(177). नित्य कुआँ खोदना, नित्य पानी पीना = प्रतिदिन काम करके पेट भरना।
प्रयोग – मजदूर कहाँ से इतना पैसा लाएँ जिससे कि एक घर खड़ा हो जाए। वे लोग तो नित्य कुआँ खोदते हैं और नित्य पानी पीते हैं।

(प, फ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(178). पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो किस्मत (या कुदरत) का खेल = पढ़े-लिखे लोग भी दुर्भाग्य के कारण दुःख उठाते हैं।
प्रयोग – रमेश को एम.ए. करने के बाद भी कोई काम नहीं मिल रहा है। इसी को कहते हैं- ‘पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल’।

(179). पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती = सब मनुष्य एक जैसे नहीं होते।
प्रयोग – इस दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं। कहा भी है- ‘पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती’।

(180). पल में तोला, पल में माशा = अत्यन्त परिवर्तनशील स्वभाव होना।
प्रयोग – दादी का स्वभाव कुछ समझ नहीं आता। कल कुछ और थी, आज कुछ और हैं- ‘पल में तोला, पल में माशा’।

(181). पाँचों उंगलियाँ घी में होना = हर तरफ से लाभ होना।
प्रयोग – सतीश काफी खुश था। ख़ुशी का कारण पूछा तो वह बोला- अरे, इस बार ऐसा काम कर रहा हूँ कि ‘पाँचों उंगलियाँ घी में होंगी’।

(182). पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं = बच्चे की प्रतिभा बचपन में ज्ञात हो जाती है।
प्रयोग – शिवाजी की प्रतिभा का उनके बचपन में ही पता चल गया था। तभी कहते हैं- ‘पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं’।

(183). प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता = जिसे गर्ज होती है, वही दूसरों के पास जाता है।
प्रयोग – राजू ने रमेश से कहा कि वह उसके घर आकर उसका होमवर्क पूरा करवा दे, तो रमेश ने कहा कि वह उसके घर क्यों नहीं आ जाता- ‘प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता’।

(184). पेट में आँत न मुँह में दाँत = बहुत वृद्ध व्यक्ति
प्रयोग – रामू काका के पेट में न आँत है न मुँह में दाँत, फिर भी वे मेहनत-मजदूरी करते हैं।

(185). पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं = परतंत्रता में कभी सुख नहीं।
प्रयोग – अँग्रेजों के जाने के बाद भारतवासियों को यह अहसास हुआ कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।’

(186). पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा = भोजन किए बिना काम में मन न लगना।
प्रयोग – जब बैठक दो बजे भी समाप्त न हुई तो सारे सदस्य चिल्लाने लगे- ‘पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा’, अब हम लोग बिना कुछ खाए काम नहीं कर सकते।

(187). पर उपदेश कुशल बहुतेरे = दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं।
प्रयोग – मंदिर का पुजारी सभी दर्शनार्थियों को यह उपदेश देता है कि परिश्रम करके खाओ’, ‘मिल-जुल कर बाँट कर खाओ’ और खुद मंदिर में चढ़ा-चढ़ावा अकेले हजम कर जाता है। सच है, ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’।

(188). पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है = सत्संगति से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं।
प्रयोग – अच्छे लोगों के साथ उठने-बैठने के कारण अब रामेश्वर का बेटा कैसे बदल गया है। किसी ने सही कहा है कि पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है।

(189). पीर, बाबरची, भिश्ती खर = जब किसी व्यक्ति को छोटे-बड़े सब काम करने पड़ें।
प्रयोग – बेचारे सुंदर को अब तक तो ऑफिस में ही सारे काम करने पड़ते थे, अब शादी के बाद पत्नी के डर से घर के भी सारे काम करने पड़ते हैं। बेचारे की हालत तो पीर, बाबरची, भिश्ती खर जैसी हो गई है।

(190). पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की = धन और विद्या अपनी पहुँच के भीतर हों तभी लाभकारी होते हैं।
प्रयोग – जिसके पास धन भी है और ज्ञान भी वे लोग संसार में किसी से मात नहीं खाते क्योंकि ऐसे लोगों के लिए यह कहावत सच है कि पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की।

(191). फटक चन्द गिरधारी, जिनके लोटा न थारी = अत्यन्त निर्धन व्यक्ति
प्रयोग – केशव के पास देने को कुछ नहीं है। वह तो फटक चन्द गिरधारी है।

(192). फूंक दो तो उड़ जाय = बहुत दुबला-पतला आदमी
प्रयोग – रमा तो ऐसी दुबली-पतली थी कि ‘फूंक दो तो उड़ जाय’।

(ब, भ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(193). बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = वह व्यक्ति जो किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति की कद्र न जानता हो।
प्रयोग – उपदेश झाड़ने आए हो, कह रहे हो- चाय मत पीयो। भला तुम क्या जानो इसके गुण- ‘बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद’।

(194). बहती गंगा में हाथ धोना = अवसर का लाभ उठाना।
प्रयोग – सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।

(195). बिल्ली के भागों छींका टूटा = अकस्मात् कोई काम बन जाना।
प्रयोग – अगर ट्रेन लेट न होती तो हमें कैसे मिलती। ये तो बिल्ली के भागों छींका टूट गया।

(196). बंदर के हाथ नारियल = किसी के हाथ ऐसी मूल्यवान चीज पड़ जाए, जिसका मूल्य वह जानता न हो।
प्रयोग – छोटू को स्कूटर देना तो बंदर के हाथ नारियल देना है।

(197). बगल में छुरी, मुँह में राम = मुँह से मीठी-मीठी बातें करना और हृदय में शत्रुता रखना।
प्रयोग – वैसे तो बड़ा भाई छोटे भाइयों को बहुत प्यार करता था, लेकिन मौका पाते ही उनकी सब सम्पत्ति हड़प ली। इसे कहते हैं-‘बगल में छुरी, मुँह में राम’।

(198). बत्तीस दाँतों में जीभ = शत्रुओं से घिरा रहना।
प्रयोग – लंका में विभीषण ऐसे रहते थे जैसे बत्तीस दाँतों में जीभ रहती है।

(199). बासी बचे न कुत्ता खाय = आवश्यकता से अधिक चीज न बनाना जिससे कि खराब न हो।
प्रयोग – रामू के यहाँ तो रोज जितनी चीजों की जरूरत होती है, उतनी ही आती है- ‘बासी बचे न कुत्ता खाय’।

(200). बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख = यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो माँगने पर भीख भी नहीं मिलती।
प्रयोग – पहले तो माँगने से भी नहीं दीं और आज हरीश ने अपने आप ही सारी किताबें मुझको दे दीं। ठीक ही है- ‘बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख’।

(201). बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम = बेमेल बात
प्रयोग – गाँव के रामू ने जब अंग्रेजी मेम से शादी कर ली तो सब यही कहने लगे कि ये तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम है।

(202). बैठे से बेगार भली = खाली बैठे रहने से कुछ न कुछ काम करना भला होता है।
प्रयोग – मेरे पास कोई काम नहीं था। मन में आया कुछ लिखा ही जाए- ‘बैठे से बेगार भली’।

(203). बंदर के गले में मोतियों की माला = किसी मूर्ख को मूलयवान वस्तु मिल जाना।
प्रयोग – भृगु जैसे निपट गँवार को न जाने कैसे इतनी सुशील, गुणी और सुंदर पत्नी मिल गई। इसे कहते हैं बंदर के गले में मोतियों की माला। सब किस्मत का खेल है।

(204). बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी = अपराधी किसी-न-किसी दिन पकड़ा ही जाएगा।
प्रयोग – आतंकवादी तीन दिन तक तो मंदिर में छुपकर फायरिंग करते रहे। अंत में पुलिस की गोलियों से सभी मारे गए। ठीक ही कहा गया है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाती।

(205). बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदलते हैं = एक न एक दिन अच्छा समय आता ही है।
प्रयोग – अरे भाई हमलोग मेहनत कर रहे हैं, कभी-न-कभी तो हमें भी सफलता मिलेगी। बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं।

(206). बाबा ले, पोता बरते = किसी वस्तु का अधिक टिकाऊ होना।
प्रयोग – सस्ते के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। जो भी सामान खरीदो ऐसा हो कि बाबा ले, पोता बरते’, भले वह चीज महँगी क्यों न हो।

(207). विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी, को मीत = संकट के समय ही मित्र और शत्रु की पहचान होती है।
प्रयोग – जब मैं मुसीबत में था तब सुरेश को छोड़कर किसी भी दोस्त ने मेरा साथ नहीं दिया। सच में मुझे तब पता चला कि सुरेश के अलावा मेरा कोई दोस्त नहीं है। ठीक ही कहा गया है कि विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी को मीत।

(208). बिल्ली को ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं = जरूरतमंद को स्वप्न में भी जरूरत की चीज दिखाई देती है।
प्रयोग – मेरे भाई साहब पैसे के पीछे पागल हो गए हैं। दिन-रात उन्हें यही चिंता लगी रहती है कि पैसा कैसे कमाया जाए। क्या करें उनके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि बिल्ली को तो ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं।

(209). बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी = दुष्ट लोग स्वयं लाभ न उठा पाएँ तो दूसरों की हानि तो कर ही देंगे।
प्रयोग – मंत्री जी ने संस्था के अधिकारी को धमकी देते हुए कहा, ‘अगर मैनेजर के पद पर मेरे आदमी को नहीं लगाया, तो मैं यह पद ही कैंसिल करवा दूँगा। यह तो वही बात हुई कि बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी।

(210). बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले = पिछली बातों को भुलाकर आगे की चिन्ता करनी चाहिए।
प्रयोग – इधर-उधर आवारागर्दी करने के कारण मनोज बी० ए० की परीक्षा में फेल हो गया और जब उसने रोना-धोना शुरू कर दिया तो शर्माजी ने समझाया कि ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले।’

(211). बूर के लड्डू जो खाए सो पछताए, जो न खाय वह भी पछताय = ऐसा कार्य जिसको करने वाले तथा न करने वाले, दोनों ही पछताते हैं।
प्रयोग – राजू श्याम से बोला कि शादी को बूर का लड्डू समझो। इसे तो जो खाए सो पछताए और जो न खाए सो पछताए।

(212). बोया गेहूँ, उपजे जौ = कार्य कुछ परिणाम कुछ और
प्रयोग – रमेश ने पैसा खर्च करके बेटे को मैडीकल में ऐडमिशन दिलाया। बेटा डॉक्टर भी बन गया पर प्रैक्टिस न चली। यह देखकर महेश ने उसके लिए एक केमिस्ट की दुकान खुलवा दी। बेचारा लड़का, डॉक्टर से कैमिस्ट बन गया। यह तो वही बात हुई कि बोया गेहूँ, उपजे जौ।

(213). बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ ते होय = बुरे कर्मो से अच्छा फल नहीं मिलता।
प्रयोग – शमीम सारी जिंदगी बेईमानी करता रहा। बेईमानी के पैसे से सुख सुविधाएँ तो मिल गई, पर बच्चे बिगड़ गए और बाप की ही तरह गलत रास्तों पर चलने लगे। बच्चों को गलत रास्ते पर चलता देख शमीम को अच्छा नहीं लगता पर कोई क्या कर सकता है, जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से हो जाएँगे।

(214). भागते चोर की लंगोटी ही सही = जहाँ कुछ न मिलने की आशंका हो, वहाँ थोड़े में ही संतोष कर लेना अच्छा होता है।
प्रयोग – सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।

(215). भैंस के आगे बीन बजाना = मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।
प्रयोग – रवि को पढ़ाई की बातें समझाना बेकार है। उसके लिए पढ़ाई-लिखाई सब बेकार की बातें हैं। तुम व्यर्थ ही भैंस के आगे बीन बजा रहे हो।

(216). भरी मुट्ठी सवा लाख की = भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है।
प्रयोग – रामपाल को वेतन बहुत कम मिलता है, लेकिन वह किसी को कुछ नहीं बताता। सही बात है- ‘भरी मुट्ठी सवा लाख की’ होती है।

(217). भेड़ की खाल में भेड़िया = जो देखने में भोला-भाला हो, परन्तु वास्तव में खतरनाक हो।
प्रयोग – आजकल कुछ लालची नेता लोग ‘भेड़ की खाल में भेड़िये’ बने शिकार खेल रहे हैं, उन्हें बेनकाब करना चाहिए।

(218). भीख माँगे और आँख दिखावे = दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना।
प्रयोग – रमाकांत की हालत बहुत ही खस्ता है, पर दूसरों के सामने अकड़ दिखाने से बाज नहीं आता। ऐसे ही लोगों के लिए यह कहा गया है कि ‘भीख माँगे और आँख दिखावे।

(219). भूख में किवाड़ पापड़ = भूख के समय सब कुछ अच्छा लगता है।
प्रयोग – वह भिखारी बहुत भूखा था। मेरे पड़ोसी ने उसे तीन दिन की बासी रोटी और सब्जी दी तो उसने बड़े स्वाद से खाई। सच है भूख में किवाड़ भी पापड़ हो जाते हैं।

इसे भी पढ़े – छन्द (Chhand) : गति, यति, तुक, मात्रा, दोहा, सोरठा, चौपाई, कुंडलियां, सवैया

(म से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(220). मान न मान मैं तेरा मेहामन = जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।
प्रयोग – जब एक अजनबी जबरदस्ती रामू से आत्मीयता दिखाने लगा तो रामू बोला- ‘मान न मान मैं तेरा मेहामन’।

(221). मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी = जब दो व्यक्ति आपस में मिल जाएँ जो किसी अन्य के दखल देने की जरूरत नहीं होती।
प्रयोग – यदि राजू रामू से संतुष्ट रहेगा तो कोई कुछ नहीं कहेगा। कहावत है न- ‘मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी’

(222). मन के हारे हार है, मन के जीते जीत = भारी से भारी विपत्ति पड़ने पर भी साहस नहीं छोड़ना चाहिए।
प्रयोग – विद्या रमा से बोली कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। तुम अपने मन को दृढ़ करो।

(223). मन चंगा तो कठौती में गंगा = यदि मन शुद्ध हो तो तीर्थाटन का फल घर में ही मिल सकता है।
प्रयोग – रामू काका कभी गंगा नहाने नहीं जाते, वह हमेशा सबकी मदद करते रहते हैं। ठीक ही कहते है- ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।

(224). मरता क्या न करता = विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य अनुचित काम करने को भी तैयार हो जाता है।
प्रयोग – जब मैनेजर ने रामू की छुट्टी स्वीकार नहीं की तो उसने उसे मारने की धमकी दे दी। भाई, ‘मरता क्या न करता’।

(225). मारे और रोने न दे = बलवान आदमी के आगे निर्बल का वश नहीं चलता।
प्रयोग – शेरसिंह सबको डाँटता रहता है और किसी को बोलने भी नहीं देता। ये तो वही बात हुई- ‘मारे और रोने न दे’।

(226). मुफ़लिसी में आटा गीला = दुःख पर और दुःख आना।
प्रयोग – एक तो चन्दन का रोजगार छूटा, दूसरे बच्चे भी बीमार पड़ गए- ‘मुफ़लिसी में आटा गीला’ हो गया।

(227). मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक = जहाँ तक किसी मनुष्य की पहुँच होती है, वह वहीं तक जाता है।
प्रयोग – घर में अगर कोई लड़ाई-झगड़ा हो जाता है तो रामू सीधा दादाजी के पास जाता है। सब यही कहते हैं कि रामू की ‘मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक’ है।

(228). मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी = बड़ी हानि हो तो उसी के साथ थोड़ी और हानि भी सह ली जाती है।
प्रयोग – दूकान में आग लगने के बाद घर से कुछ रूपए चोरी हो जाने पर रोहन का अब वही हाल था- ‘मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी’।

(229). मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और = किसी की आकांक्षाएँ सदैव पूरी नहीं होती।
प्रयोग – मैंने सोचा था कि बी.एड. करके अध्यापक बनूँगा, लेकिन बन गया संपादक; यह कहावत सही है- ‘मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और’।

(230). महँगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार = महँगी वस्तु केवल खरीदते समय कष्ट देती है, पर सस्ती चीज हमेशा कष्ट देती है।
प्रयोग – शर्मा जी न जाने कहाँ से कोई लोकल कूलर खरीद लाए हैं। जिस दिन से खरीदा है रोज उसमें कुछ-न-कुछ हो जाता है। मैंने उन्हें समझाया था कि अच्छी कंपनी का खरीदना पर नहीं माने। अब दुखी होते फिर रहे हैं। सच ही कहा गया है कि महँगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार।

(231). माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता = काम, सीखने से ही आता है।
प्रयोग – यदि बच्चों की कोई काम न आए तो उन्हें सिखाओ। तुम्हें भी तो किसी ने सिखाया ही होगा। माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता।

(232). माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ = धन ही धन को खींचता है।
प्रयोग – सेठ हंसराज करोड़पति आसामी हैं, अपने पैसे के बल पर वे एक ओर जमीनें खरीदते हैं तो दूसरी ओर फ्लैट बना बनाकर बेचते हैं। सच ही कहा गया है कि ‘माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ’।

(233). माने तो देवता, नहीं तो पत्थर = विश्वास में सब कुछ होता है।
प्रयोग – मेरा तो विश्वास है कि प्राणायाम समस्त रोगों का निदान है अतः मैं रोज प्राणायाम करता हूँ। पर मेरा भाई मेरी धारणा के विपरीत है। ठीक है माने तो देवता नहीं तो पत्थर वाली उक्ति यहाँ साबित होती है।

(234). मियाँ की जूती मियाँ का सिर = जब अपनी ही चीज अपना नुकसान करे।
प्रयोग – सुरेश ने एक घड़ी खरीदी तो उसे लगा कि दुकानदार ने उसे ठग लिया है। सुरेश ने जब यह घटना मुझे बताई तो मैंने उस घड़ी का डायल बदल दिया और सुंदर-सी पैकिंग में ले जाकर उसी दुकानदार को दुगुनी कीमत में बेच दिया। इसे कहते हैं- मियाँ की जूती मियाँ का सिर।

(य, र, ल, व से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(235). यह मुँह और मसूर की दाल = जब कोई अपनी हैसियत से अधिक पाने की इच्छा करता है तब ऐसा कहते हैं।
प्रयोग – सोहन कहने लगा कि मैं तो सिल्क का सूट बनवाऊँगा। मैंने कहा- जरा आईना देख आओ- ‘यह मुँह और मसूर की दाल’।

(236). यहाँ परिन्दा भी पर नहीं मार सकता = जहाँ कोई आ-जा न सके।
प्रयोग – मेरे ऑफिस में इतना सख्त पहरा है कि यहाँ कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता।

(237). यथा राजा, तथा प्रजा = जैसा स्वामी वैसा ही सेवक।
प्रयोग – जिस गाँव का मुखिया ही भ्रष्ट और पाखंडी हो उस गाँव के लोग भले कैसे हो सकते हैं। वे भी वही सब करते हैं जो उनका मुखिया करता है। किसी ने ठीक ही तो कहा है कि यथा राजा, तथा प्रजा।

(238). रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी = बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना।
प्रयोग – लड़की घर से भाग गई, बेटा स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन मिसेज बक्शी के तेवर अभी भी नहीं बदले। यह तो वही बात हुई- रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी।

(238). रात छोटी कहानी लम्बी = समय थोड़ा है और काम बहुत है।
प्रयोग – जीवन छोटा है और काम बहुत हैं। किसी ने ठीक ही कहा है- ‘रात छोटी कहानी लम्बी’ है।

(239). राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी = दो मनुष्यों के एक ही तरह का होना।
प्रयोग – राम और श्याम की अच्छी जोड़ी मिली है। दोनों महामूर्ख हैं। ‘राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी’।

(240). राम राम जपना, पराया माल अपना = ढोंगी मनुष्य/ दूसरों का माल हड़पने वाले।
प्रयोग – वह साधु नहीं कपटी और छली है। इसका तो एक ही काम है- ‘राम राम जपना, पराया माल अपना’।

(241). रात गई, बात गई = अवसर निकल जाना।
प्रयोग – नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भेजने की तिथि तो निकल गई अब तुम फॉर्म क्यों खरीदना चाहते हो? अब तो रात गई, बात गई।

(242). रोटी खाइए शक़्कर से, दुनिया ठगिए मक्कर से = आजकल फ़रेबी लोग ही मौज उड़ाते हैं।
प्रयोग – सुरेंद्र दिन रात परिश्रम करता है, तो भी उसका गुजारा नहीं चल पाता और दूसरी ओर उसके छोटे भाई को देखो, गलत-सलत धंधे करता है। आजकल ऐसे ही लोगों का जमाना है और ऐसे ही लोगों के लिए यह कहावत प्रचलित है कि ‘रोटी खाइए शक़्कर से और दुनिया ठगिए मक्कर से’।

(243). लकड़ी के बल बंदरी नाचे = शरारती से शरारती या दुष्ट लोग भी डंडे के भय से वश में आ जाते हैं।
प्रयोग – संजू बहुत शरारती है, पर जब अध्यापक के हाथ में बेंत होता है, तो वह जैसा कहते हैं संजू वैसे करने लगता है। ठीक ही कहते हैं- लकड़ी के बल बंदरी नाचे।

(244). लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का = काम बन जाए तो अच्छा है, नहीं बने तो कोई बात नहीं।
प्रयोग – देखा-देखी रहीम ने भी आज लॉटरी खरीद ही ली। ‘लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का’।

(245). लाख जाए, पर साख न जाए = धन व्यय हो जाए तो कोई बात नहीं, पर सम्मान बना रहना चाहिए।
प्रयोग – विवेक बात का पक्का है, उसका एक ही सिद्धांत है- ‘लाख जाए, पर साख न जाए’।

(246). लाठी टूटे न साँप मरे = किसी की हानि हुए बिना स्वार्थ सिद्ध हो जाना
प्रयोग – रामू काका किसी को हानि पहुँचाए बगैर काम करना चाहते हैं- ‘लाठी टूटे न साँप मरे’।

(247). लातों के भूत बातों से नहीं मानते = दुष्ट प्रकृति के लोग समझाने से नहीं मानते।
प्रयोग – मैंने रामू के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया, पर वह नहीं माना। ठीक ही है- ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’।

(248). लालच बुरी बला = लालच से बहुत हानि होती है इसलिए हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए।
प्रयोग – सब जानते हैं कि लालच बुरी बला है, फिर भी लालच में पड़ जाते हैं।

(249). लोभी गुरु और लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम ठेला = लालच बहुत बुरी चीज है।
प्रयोग – केशव और मनोज दोनों लालची हैं, इसी से दोनों में लड़ाई-झगड़ा बना रहता है। कहावत प्रसिद्ध है- ‘लोभी गुरु और लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम ठेला’।

(250). लोहे को लोहा ही काटता है = दुष्ट का नाश दुष्ट ही करता है।
प्रयोग – मैंने सोचा कि ‘लोहे को लोहा ही काटता है’ इसलिए कालू बदमाश को ठीक करने के लिए मैंने चुन्नू बदमाश की सेवाएँ प्राप्त की।

(251). वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे = आनन्द अथवा उत्कर्ष का समय समाप्त होना।
प्रयोग – जब मालिक नहीं थे तो रमेश ने खूब मौज उड़ाई। अब जब मालिक आ गए हैं तो उनकी सारी मौज खत्म हो गई। तब रामू बोला कि वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे।

(252). वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है = बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य भी शक्की आदमी को ठीक नहीं कर सकता।
प्रयोग – रामू को प्रेत तंग करता है। मैंने हर प्रकार का प्रयास किया कि उसके इस संदेह का निराकरण कर दूँ। पर मुझे सफलता न मिली। सच ही है- ‘वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है’।

(253). वही ढाक के तीन पात = जब किसी की अवस्था ज्यों की त्यों बनी रहे, उसमें कोई सुधार न हो।
प्रयोग – मुझे जीवन में बड़ी-बड़ी आशायें थीं। परन्तु तीस वर्ष नौकरी करने के बाद आज भी मैं गरीब ही हूँ जैसा पहले था- ‘वही ढाक के तीन पात’।

(254). विनाशकाले विपरीत बुद्धि = विपत्ति पड़ने पर बुद्धि का काम न करना।
प्रयोग – विनाश के समय रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। ठीक ही कहा है- ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’।

(255). विपत्ति कभी अकेली नहीं आती = मनुष्य के ऊपर विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।
प्रयोग – पिता की मृत्यु, छोटी बहन की बीमारी और स्वयं अपने दुर्भाग्य ने रामू को बुरी तरह झकझोर दिया था। कहते भी हैं- ‘विपत्ति कभी अकेली नहीं आती’।

(257). विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है = बुरे को बुराई और पापी को पाप ही अच्छा लगता है।
प्रयोग – कालू से शराब छोड़ने के लिए सबने कहा, पर वह नहीं मानता। सही बात है- ‘ विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है’।

(श, स, ह से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi)

(258). शर्म की बहू नित भूखी मरे = जो खाने-पीने में शर्माता है, वह भूखा मरता है।
प्रयोग – गौरव ने कहा कि खाने-पीने में काहे की शर्म। भूखे थोड़े ही मरना है। आपने सुना नहीं- ‘शर्म की बहू नित भूखी मरे’।

(259). शक़्कर खोरे को शक़्कर और मूँजी को टक्कर = जो जिस योग्य होता है, उसे वैसा ही मिल जाता है।
प्रयोग – शर्मा जी का बेटा यहाँ रहकर गलत सोहबत में पड़कर शराब पीने लगा था। शर्मा जी ने उसे मुंबई होस्टल में भेज दिया जिससे कि उसकी बुरी संगत छूट जाए पर हुआ यह कि वहाँ जाकर भी उसे वैसे ही दोस्त मिल गए। इसे कहते हैं शक़्कर खोरे को शक़्कर और मूँजी को टक्कर हर जगह मिल जाती है।

(260). शुभस्य शीघ्रम् = शुभ काम को जल्द कर लेना चाहिए।
प्रयोग – शर्माजी ने कहा कि नए मकान में जाने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। कहते भी हैं- ‘शुभस्य शीघ्रम्’।

(261). शेर का बच्चा शेर ही होता है = वीर व्यक्ति का पुत्र वीर ही होता है।
प्रयोग – पं. मोतीलाल नेहरू जैसे बुद्धिमान और देशभक्त के पुत्र पं. जवाहरलाल नेहरू हुए। सच ही कहते हैं-‘शेर का बच्चा शेर ही होता है’।

(262). शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता = सज्जन लोग कष्ट पड़ने पर भी नीच कर्म नहीं करते।
प्रयोग – श्रीरामचंद्र जी पर कितने कष्ट पड़े, पर उन्होंने अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी थी। ये कहावत ठीक ही है- ‘शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता’।

(263). साँच को आँच नहीं = जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता।
प्रयोग – मुकेश रमेश से बोला कि जब तुमने गलती की ही नहीं है, तो फिर डर क्यों रहे हो? चलो सब कुछ सच-सच बता दो, क्योंकि साँच को आँच नहीं होती।

(264). सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता = सीधेपन से काम नहीं चलता।
प्रयोग – हमने राजी-वाजी से काम निकालना चाहा, पर ठीक ही कहते हैं- ‘सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता’।

(265). सौ सुनार की, एक लुहार की = कमजोर आदमी की सौ चोट और बलवान व्यक्ति की एक चोट बराबर होती है।
प्रयोग – सौरभ बड़ी देर से कौशल की पीठ पर थप्पड़ मार रहा था। अंत में किशन ने उसको जोर से एक घूँसा मार दिया तो सौरभ कराहने लगा। ठीक ही है- ‘सौ सुनार की, एक लुहार की’।

(266). संतोषी सदा सुखी = संतोष रखने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
प्रयोग – रमेश ज्यादा हाय-तौबा नहीं करता इसलिए हमेशा सुखी रहता है। ठीक ही कहते हैं- ‘संतोषी सदा सुखी’।

(267). सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला = सच्चे आदमी को सदा यश और झूठे को अपयश मिलता है।
प्रयोग – आदमी को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुँह काला होता है।

(268). सबसे भली चुप = चुप रहना अच्छा होता है।
प्रयोग – एक आदमी रामू को बेबात गालियाँ बक रहा था, तो रामू ने सोचा कि इस पागल आदमी से उलझना बेकार है- ‘सबसे भली चुप’।

(269). सब्र का फल मीठा होता है = सब्र करने से बहुत लाभ होता है।
प्रयोग – अध्यापक ने छात्र को समझाया कि सब्र का फल मीठा होता है। वह बस मन लगाकर पढ़ाई करे।

(270). सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता = जो ऊपर से आकर्षक और अच्छा मालूम होता है, वह हमेशा अच्छा नहीं होता।
प्रयोग – सच ही कहते हैं- ‘सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता’। मैं जिस व्यक्ति को विनम्रता की मूर्ति समझा था, वह इतना दुष्ट होगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

(271). सयाना कौआ गलीज खाता है = चालाक लोग बुरी तरह से धोखा खाते हैं।
प्रयोग – राजू बहुत चालाक था इसलिए ऐसे लोगों के चक्कर में फंस गया कि अब उसे पैसे भी ज्यादा देने पड़े और गाड़ी भी अच्छी नहीं मिली, इसलिए कहते हैं- ‘सयाना कौआ गलीज खाता है’।

(272). साँप का बच्चा सपोलिया = शत्रु का पुत्र शत्रु ही होता है।
प्रयोग – मोहन की कालू से शत्रुता थी। उसके मरने के बाद कालू का बेटा भी शत्रुता करने लगा। ठीक ही है- ‘साँप का बच्चा सपोलिया’।

(273). साँप निकल गया, लकीर पीटने से क्या लाभ = यदि आदमी अवसर पर चूक जाए तो बाद में उसे पछताना पड़ता है।
प्रयोग – जब डाकू बैंक लूटकर ले गए तब पुलिस पहुँचकर, वहाँ पूछताछ करने लगी तो एक आदमी ने कहा- ‘साँप निकल गया है, अब लकीर पीटने से क्या लाभ है’।

(274). सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है = अमीर या सुखी व्यक्ति समझता है कि सब लोग आनन्द में हैं।
प्रयोग – लॉटरी खुलने से संजू अमीर हो गया तो वह अपने गरीब दोस्त से अच्छे कपड़े पहनने की बात करने लगा। सच ही कहा है- ‘सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है’।

(275). सुनिए सबकी, कीजिए मन की = बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए, पर जो अच्छा लगे, उसी के अनुसार काम करना चाहिए।
प्रयोग – रामू सुनता तो सबकी है, पर करता अपने मन की है। ठीक बात है- ‘सुनिए सबकी, कीजिए मन की’।

(276). सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते = यदि कोई व्यक्ति शुरू में गलती करे और बाद में सुधर जाए तो उसकी गलती क्षमा योग्य होती है।
प्रयोग – राजू ने शिक्षक के समझाने पर सिगरेट पीनी छोड़ दी तो सब यही कहने लगे- ‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते’।

(277). सेर को सवा सेर = बहुत बुद्धिमान या बलवान को उससे भी बुद्धिमान या बलवान आदमी मिल जाता है।
प्रयोग – जब मुझे आपने से भी अधिक बलवान राजू मिला तो रामू काका जोर से हँस पड़े और मुझसे बोले- कहो बेटा, मिल गया न ‘सेर को सवा सेर’।

(278). सोने पे सुहागा = किसी वस्तु या व्यक्ति का और बेहतर होना।
प्रयोग – इधर राजेश ने इंटर पास की और उधर वह मेडीकल प्रवेश परीक्षा में पास हो गया। ये तो सोने पे सुहागा है।

(279). सौ कपूतों से एक सपूत भला = अनेक कुपुत्रों से एक सुपुत्र अच्छा होता है।
प्रयोग – रमेश के चार पुत्र हैं। वे सब मूर्ख और दुष्ट हैं। इससे तो अच्छा होता एक ही पुत्र होता, परन्तु वह सपूत होता। कहते भी हैं- ‘सौ कपूतों से एक सपूत भला’।

(280). सहज पके सो मीठा होय = जो काम धीरे-धीरे होता है वह संतोषप्रद और पक्का होता है।
प्रयोग – रमा ने मुझसे कहा कि तुम हर काम में जल्दीबाजी क्यों करती हो? जल्दी का काम तो शैतान का होता है और काम बिगड़ जाता है। यह बात ध्यान रखो ‘सहज पके सो मीठा होय’।

(281). होनहार बिरवान के होत चीकने पात = होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।
प्रयोग – वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।

(282). हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और = कहना कुछ और करना कुछ और
प्रयोग – आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।

(283). हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है = अपने स्वार्थ के लिए सबको सिर झुकाना पड़ता है।
प्रयोग – शेरसिंह इतने बड़े काश्तकार हैं। परंतु काम अटकने पर छोटे से क्लर्क के आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। सच ही कहा है- ‘हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है’।

(284). हर कैसे, जैसे को तैसे = जो जैसा कर्म करता है, उसको वैसा ही फल मिलता है।
प्रयोग – अध्यापक पढ़ाने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं और शैतान बच्चों को प्रताड़ित करते हैं- ‘हर कैसे, जैसे को तैसे’।

(285). हराम की कमाई, हराम में गँवाई = चोरी, डाका आदि की कमाई का फजूल खर्च हो जाना।
प्रयोग – करण की बेईमानी की सारी कमाई उसके पिता की बीमारी में लग गई। कहावत भी है- ‘हराम की कमाई, हराम में गँवाई’।

(286). हलक से निकली, खलक में पड़ी = मुँह से निकली बात सारे संसार में फैल जाती है।
प्रयोग – रामू ने राजू से कहा- कृपया यह बात किसी से मत कहना, नहीं तो सब लोग इसे जान जाएंगे। याद रखो- ‘हलक से निकली, खलक में पड़ी’।

(287). हांडी का एक ही चावल देखते हैं = किसी परिवार या देश के एक या दो व्यक्ति देखने से ही पता चल जाता है कि शेष लोग कैसे होंगे।
प्रयोग – शिक्षा निदेशक ने प्रिंसीपल से कहा- आपके विद्यालय में कुछ छात्रों से बातचीत करके मैं जान गया हूँ कि आपके विद्यालय में कैसे विद्यार्थी पढ़ते हैं- ‘हांडी का एक ही चावल देखते हैं’।

(288). हाथ कंगन को आरसी क्या = जो वस्तु सामने हो उसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
प्रयोग – इंटरव्यू देने गए रामू ने मैनेजर से कहा कि हाथ कंगन को आरसी क्या, टाईपिंग करवा के देख लीजिए कि मेरी स्पीड कितनी है।

(289). हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी = हठी मनुष्य कभी अपना हठ नहीं छोड़ता।
प्रयोग – केशव प्रधानमंत्री से मिलना चाहता था। जब गार्डो ने उसे नहीं मिलने दिया तो वह वहीं धरना देकर बैठ गया- ‘हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी’; फिर गार्डो को उसे प्रधानमंत्री से मिलवाना ही पड़ा।

(290). हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा = जो मनुष्य साहसी और परिश्रमी होते हैं, उनकी सहायता ईश्वर करते हैं।
प्रयोग – अध्यापक ने सोनू से कहा कि भाग्य के भरोसे रहना मूर्खता है। तुम यत्न करो, भाग्य तुम्हारी सहायता करेगा- ‘हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा’।

(291). हथेली पर सरसों नहीं जमती = हर काम में समय लगता है, कहते ही काम नहीं हो जाता।
प्रयोग – अफसर ने शर्मा जी को डाँटते हुए कहा, ‘मैं कह चुका हूँ कि आपका काम दो सप्ताह में हो पाएगा और आप चाहते हैं कि आज ही हो जाए। हथेली पर सरसों नहीं जमती, यह बात आपकी समझ में नहीं आती?

(292). हाथी के पाँव में सबका पाँव = बड़ों के साथ बहुतों का गुजारा हो जाता है।
प्रयोग – सभी लड़के इस बात से परेशान थे कि संगोष्ठी में क्या बोलेंगे? तभी मैंने उन्हें समझाया कि चिंता क्यों करते हो। सुरेश भाई भी तो हमारे साथ चल रहे हैं कोई भी प्रश्न होगा सुरेश भाई सँभाल लेंगे क्योंकि हाथी के पाँव में सबका पाँव होता है।

(293). हीरे की परख जौहरी जाने = गुणी व्यक्ति का मूल्य, गुणवान व्यक्ति ही समझता है।
प्रयोग – मेरे बेटे ने पटना मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पास की। दो साल तक वह अच्छे अस्पताल में नौकरी की कोशिश करता रहा, पर उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली। हारकर उसने आस्ट्रेलिया में एप्लाई किया। उन लोगों ने उसे तुरंत बुला लिया। सच ही कहा गया है कि हीरे की परख जौहरी ही जानता है।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने “Proverbs in Hindi: लोकोक्तियाँ” को विस्तार से बताया है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। इस लेख के बारे में अपने विचार या सुझाव हमें बताये। इसी तरह के और आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए हमारे वेबसाइट स्टडी डिसकस और सोशल मीडिया यूट्यूब, टेलीग्राम, फेसबुकऔर इन्स्टाग्राम पर फॉलो करे।

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