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रस हिंदी व्याकरण का बहुत ही महत्पूर्ण विषय है जो लगभग हर प्रतियोगी परीक्षा और बोर्ड कक्षाओं में पूछा जाता है तो चलिए जानते है रस की परिभाषा (Ras ki Paribhasha), रस के प्रकार और उनके उदाहरण।
रस की परिभाषा (Ras Ki Paribhasha)
रस का शाब्दिक अर्थ होता है आनन्द। काव्य के पढ़ने, सुनने से जो आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ही रस कहते हैं। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है।
रस के प्रमुख अंग
रस की अवधारणा को पूर्णता प्रदान करने में उनके प्रमुख चार अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
1. स्थायी भाव
स्थायी भाव रस का पहला एवं सर्वप्रमुख अंग है। भाव शब्द की उत्पत्ति ‘भ्‘ धातु से हुई है। जिसका अर्थ है विद्यमान या संपन्न होना। अतः जो भाव मन में सदा अभिज्ञान ज्ञात रूप में विद्यमान रहता है उसे स्थिर या स्थायी भाव कहते हैं। जब स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है तो वह रस रूप में व्यक्त हो जाते हैं।
स्थायी भावों की कुल संख्या ग्यारह है – रति, हास्य, क्रोध, शोक, उत्साह, भय, जुगुप्सा (घृणा), वत्सल, आश्चर्य, दास्य या भक्त और विस्मय।
2. विभाव
जो व्यक्ति, परिस्थिति या वस्तु स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उसे विभाव कहते हैं। विभाव निम्न दो प्रकार होते हैं।
(I). आलम्बन विभाव – जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं।
जैसे: नायक-नायिका, प्रेमी-प्रेमिका
(II). उद्दीपन विभाव – आश्रय के मन में भावों को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाह्य चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे: सीता को देखकर राम के मन में आकर्षण (रति भाव) उत्पन्न होता है।
3. अनुभाव
आलंबन और उद्दीपन के कारण जो कार्य होता है, उसे अनुभाव कहते हैं। शास्त्र के अनुसार आश्रय के मनोगत भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती है। अनुभाव रस योजना का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है।
4. संचारी भाव
वे भाव जिनका कोई स्थायी कार्य नहीं होता संचारी भाव कहलाते है। यह भाव तत्काल बनते हैं एवं मिटते हैं। संचारी भाव रस का अंतिम महत्वपूर्ण अंग है।
इसे भी पढ़े – रस के प्रमुख अंग – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव
रस के प्रकार (Ras Ke Prakar)
रस मुख्यतः 10 प्रकार के होते हैं परंतु हमारे आचार्यों द्वारा एक और रस भी स्वीकृत किया गया है जिसे हम भक्ति रस कहते हैं। भक्ति रस को मिलाकर अब रस के कुल ग्यारह प्रकार हैं।
क्रमांक | रस का प्रकार | स्थायी भाव |
---|---|---|
1. | श्रृंगार रस | रति |
2. | हास्य रस | हास |
3. | करुण रस | शोक |
4. | रौद्र रस | क्रोध |
5. | वीर रस | उत्साह |
6. | भयानक रस | भय |
7. | वीभत्स रस | घृणा या जुगुप्सा |
8. | अद्भुत रस | आश्चर्य |
9. | शांत रस | निर्वेद |
10 | वात्सल्य रस | वत्सल |
11 | भक्ति रस | दास्य या भक्त |
1. श्रृंगार रस (Shringar Ras ki Paribhasha)
श्रृंगार रस ‘रसों का राजा‘ एवं महत्वपूर्ण प्रथम रस माना गया है। जहाँ पर नायक और नायिका की अथवा महिला और पुरुष के प्रेम पूर्वक क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां पर श्रृंगार रस होता हैं।
सहृदय के हृदय में जब संस्कार रुप में विद्यमान रति नामक स्थायी भाव अपने प्रतिकूल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आशीर्वाद योग्य बन जाता है तब वह श्रृंगार में परिणत हो जाता है।
आलंबन विभाव – प्रेमी प्रेमिका या नायक नायिका है।
उद्दीपन विभाव – नायक-नायिका की परस्पर चेष्टाएं उद्यान।
अनुभाव – अनुराग पूर्वक स्पष्ट अवलोकन, रोमांच, आलिंगन आदि है।
संचारी भाव – मरण, उग्रता और जुगुप्सा को छोड़कर अन्य सभी संचारी भाव श्रृंगार के अंतर्गत आते हैं।
श्रृंगार रस के सुख एवं दु:ख दोनों प्रकार की अनुभूतियां होती है इस कारण इसके दो रूप है
- संयोग श्रृंगार रस
- वियोग श्रृंगार रस
(i). संयोग श्रृंगार रस (Sanyog Shringar Ras)
संयोग श्रृंगार रस के अंतर्गत नायक और नायिका के परस्पर मिलन, प्रेमपूर्ण कार्यकलाप एवं सुखद अनुभूतियों का वर्णन होता है।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेक रही पल टारत नाही।।
अर्थ – माता सीता भगवान श्रीराम के चेहरे को अपने कंकन के नग में देखती है। और वह इसे देखते हुए इतनी खो जाती है, की अपनी पलके भी झपकना भूल जाती है।
(ii). वियोग श्रृंगार रस (Viyog Shringar Ras)
वियोग श्रृंगार वहाँ पर होता है जहाँ नायक और नायिका में परस्पर प्रेम होने के बाद भी उनका मिलन नहीं हो पाता। इसे विप्रलंभ श्रृंगार रस भी कहा कहा जाता है। इसके अंतर्गत विरह से व्यथित नायक और नायिका के मन के भावों को व्यक्त किया जाता है।
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते श्याम सिधारे।
अर्थ – यहाँ पर नायिका अपने प्रेमी के वियोग में व्याकुल है और उनकी आँखों से आंसू रुक नहीं रही है।
हरि ऋम जल संतर तनु भीजै,
ता लालत न घुआवति सारी।
2. करुण रस (Karun Ras ki Paribhasha)
करुणा से हमदर्दी, प्रेम और आत्मीयता उत्पन्न होती है जिससे व्यक्ति परोपकार की ओर उन्मुख होता है। वस्तु की हानि, लाभ, प्रिय का चिर वियोग, आदि से जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती है, वहाँ करुण रस होता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है।
करुण रस का उदाहरण (Karun Ras Ka Udaharan)
मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥
रूप सील बल तेज बखानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
परहिं भूमितल बारहिं बारा।।
3. वीर रस (Veer Ras Ki Paribhasha)
सहृदय के हृदय में विद्यमान उत्साह नामक स्थायी भाव जब अपने अनुरूप विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद का रूप धारण कर लेता है, तब उसे वीर रस कहा जाता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।
वीर रस के उदाहरण (Veer Ras Ke Udaharan)
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं॥
अर्थ – इस उदाहरण में वीरता का वर्णन किया गया है। वीर तुम धीरे-धीरे बढ़ते चलते रहो चाहे तुम्हारे सामने में पहाड़ आ जाये या सिंह की दहाड़ सुनाई दे तभी मत रुको और निरंतर बिना डरे चलते रहो।
4 हास्य रस (Hasya Ras ki Paribhasha)
विकृत वेशभूषा, रहन-सहन, क्रियाकलाप या वाणी देखकर या सुनकर मन में जो उल्लास प्रकट होता है उसे ही हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास (हँसी) है।
या
आचार्यों के मतानुसार ‘हास्य’ नामक स्थायी भाव अपने अनुकूल, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तब उसे हास्य रस कहा जाता है।
इसे भी पढ़े – हास्य रस की परिभाषा और 10 प्रमुख उदाहरण
हास्य रस दो प्रकार के है:
(I). आत्मस्थ हास्य रस – जहाँ पर केवल देखने मात्र से हास्य उत्पन्न होता है उसे आत्मस्थ हास्य रस कहते है।
(II). परस्य हास्य रस – जहाँ पर दूसरों को हंसते हुए देखने से हास्य प्रकट होता है उसे परस्य हास्य रस।
अनुभाव – आंखों का मिचना, हंसते हंसते पेट पर बल पड़ जाना, मुस्कुराहट, आंखों में पानी आना, हँसी, ताली पीटना।
बच्चो को छोड़ेंगे घर पे होने दो हुडदंगा॥
अर्थ – उपर्युक्त उदाहरण में बन्दर और बंदरिया बच्चों को घर में छोड़कर गंगा जाकर नहाने की सोचते है. जो की असंभव है।
अगर आ जाए गुस्सा, तो कागज को भी मोड़ सकता हूँ।।
अर्थ – इस उदाहरण में एक बहुत बड़े महावीर व्यक्ति के बारे में बताया गया है। वह महावीर कहता है की मै बहुत बड़ा महावीर हूँ जो खाने का पापड़ को भी तोड़ देता है और उसे गुस्सा आता है तो कागज को भी मोड़ देता है।
5. रौद्र रस (Raodra Ras ki Paribhasha)
जब विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति, समाज, देश या धर्म का अपमान या अपकार करने से उसकी प्रतिक्रिया में जो क्रोध भाव उत्पन्न होता है, तब उसे रौद्र रस कहते है। रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है।
वस्तुतः जहां विरोध, अपमान या उपकार के कारण प्रतिशोध की भावना से क्रोध उपजती है, वही रौद्र रस साकार होता है। अतः अपराधी व्यक्ति, विपक्षी, दुराचारी या शत्रु रौद्र का आलंबन है।
उद्दीपन विभाव – अनिष्टकारी, निंदा, कठोर वचन, अपमानजनक वाक्य आदि।
अनुभाव – आंखों का लाल होना, भौहों का तेरेना, होठों का फड़फड़ाना , दांत पीसना, शत्रुओं को ललकारना, अस्त्र- शस्त्र चलाना आदि।
संचारी भाव – मोह, उग्रता, भावेश, स्मृति, चपलता, अति उत्सुकता, अमर्ष आदि है।
सब शोक अपना भुलाकर, करतल युग मलने लगे।।
लब शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे।।
संसार देखें अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वह हो गए उठ खड़े।।
6. भयानक रस (Bhayanak Ras ki Paribhasha)
जहाँ भयानक वस्तुओं को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले घटनाओं को देखकर या सुनकर मन में जो भाव उत्पन्न होता है उसे भयानक रस कहते हैं। भयानक रस का स्थायी भाव भय है।
आलंबन – भयावह या जंगली जानवर अथवा बलवान शत्रु।
अनुभाव – निःसहाय और निर्बल होना, शत्रुओं या हिंसक जीवो की चेष्टाएं उद्दीपन है स्वेद, कंपन, रोमांच आदि।
संचारी भाव – गिलानी, शंका, दयनीय, चिंता, आवेश आदि।
विकल बटोही बीच ही परयो मूर्छा खाए।
चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।।
7. वीभत्स रस (Vibhats Ras ki Paribhasha)
जिस वस्तु को देखकर, सुनकर या पढ़कर मन में जुगुप्सा या घृणा उत्पन्न होती है वहाँ पर वीभत्स रस होता हैं। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है।
वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है। जब घृणा या जुगुप्सा का भाव अपने अनुरूप आलंबन, उद्दीपन एवं संचारी भाव के सहयोग से आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो इसे वीभत्स रस कहा जाता है।
आलंबन – घृणास्पद व्यक्ति या वस्तुएं।
उद्दीपन विभाव – घृणित चेष्टाएं एवं ऐसी वस्तुओं की स्मृति।
अनुभाव – मुंह फेरना, झुकना, आंखें मूंद लेना
संचारी भाव – मोह, अपस्मार, व्याधि, आवेद, मरण, मूर्छा आदि।
खींचत जिभहि स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।।
अर्थ – इस उदाहरण में शव को बाज और सियार द्वारा खाते हुए घृणित विषय को बताया गया है।
स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।
8. अद्भुत रस (Adbhut Ras ki Paribhasha)
जहाँ पर किसी आलौकिक क्रियाकलाप या आश्चर्य चकित कर देने वाली वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं उसे अद्भुत रस कहते हैं।
आलंबन – आलौकिक या विचित्र वस्तु या व्यक्ति है।
उद्दीपन विभाव – आलंबन की अद्भुत विशेषताएं एवं उसका श्रवण।
अनुभाव – स्तंभ स्वेद, आश्चर्यजनक भाव, रोमांच।
संचारी भाव – वितर्क, हर्ष, आवेश, स्मृति, मति, त्रासदी।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।
अर्थ – इस उदाहरण में बिना पैर के चलना, बिना कान के सुनना जैसे आश्चर्यजनक घटनाओ के बारे में बताया जाता है जिसे जानकर सबको हैरानी होती है आखिर कोई बिना पैर के कैसे चलेगा और बिना कान के कैसे सुन पायेगा।
चकित भई गदगद वचन विकसित दृग पुलकात।।
9. शांत रस (Shaant Ras ki Paribhasha)
वह काव्य रचना जिसे पढ़ने सुनने से श्रोता के मन में निर्वेद या वैराग्य नमक स्थायी भाव उत्पन्न होता हैं, उसे शांत रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव निर्वेद या वैराग्य है।
आलंबन – संसार की क्षण भंगुरता कालचक्र की प्रबलता आदि इसके आलंबन है।
अनुभाव – संसार के प्रति मन न लगना उचाटन का भाव या चेष्टाएं
संचारी भाव – धृति, मति, विबोध, चिंता आदि।
एक दिन ऐसा आऐगा, मैं रौंदूगी तोय।।
लगे बुद विनसि जाए झण में,
गरब करै क्यों इतना।
10. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras ki Paribhasha)
माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाला रस वात्सल्य रस है। हिन्दी कवियों में सूरदास ने वात्सल्य रस को पूर्ण प्रतिष्ठा दी है। तुलसीदास की विभिन्न कृतियों के बालकाण्ड में वात्सल्य रस का उपयोग है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल या स्नेह है।
आलंबन – माता-पिता एवं संतान।
उद्दीपन – माता-पिता संतान के मध्य क्रियाकलाप।
अनुभाव – आश्रय की चेष्टाएं प्रसन्नता का भाव।
संचारी भाव – गर्व, हर्ष आदि।
मोसों कहत मोल की लीन्हो तू जसुमति कब जायो।
मनिमय कनक नन्द के आँगन।
विम्ब फकरिवे घावत।।
उक्त दोनों उदाहरण में अपने छोटे पुत्र के प्रति माँ के ममता के बारे में वर्णन किया गया है।
11. भक्ति रस (Bhakti Ras ki Paribhasha)
भक्ति रस में ईश्वर की अनुरक्ति तथा अनुराग का वर्णन होता है। इस रस में प्रभु की भक्ति और उनके गुणगान को देखा जा सकता है। भक्ति रस का स्थायी भाव है दास्य।
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
घोर भव नीर निधि, नाम निज नाव रे।।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
रस किसे कहते हैं?
काव्य के सुनने, पढ़ने से जो आनंद आता है उसे रस कहते हैं। रस मुख्यतः 11 प्रकार के होते हैं।
रस कितने प्रकार के होते हैं?
रस मुख्य रूप से 11 प्रकार के होते हैं और प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। जैसे हास्य रस का स्थायी भाव हास है।
रस के भेद कितने होते हैं?
रस के प्रमुख चार भेद होते हैं: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
श्रृंगार रस के भेद?
श्रृंगार रस के दो भेद हैं। संयोग श्रृंगार रस और वियोग श्रृंगार रस। श्रृंगार रस में प्रेमी-प्रेमिका के मिलन या वियोग का वर्णन होता है।
रस क्या है और उसके प्रकार?
रस उसे कहते है जिसे पढ़ने, सुनने से ह्रदय में एक अनुभूति होती है। रस मुख्यतः ग्यारह प्रकार के होते हैं।
श्रृंगार रस का उदाहरण क्या है?
राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाई।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेक रही पल टारत नाही।।
श्रृंगार रस के कवि कौन है?
हिंदी साहित्य में बिहारीलाल जी श्रृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे।
हिंदी में रस कितने होते हैं?
हिंदी में मुख्यतः रस ग्यारह प्रकार के होते हैं। इनके नाम है: श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, वात्सल्य, वीभत्स, अद्भुत, शांत, करुण और भयानक रस।
रौद्र रस के सरल उदाहरण
रौद्र रस के सरल उदाहरण:
श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भुलाकर, करतल युग मलने लगे।
करुण रस का उदाहरण क्या है?
मुख मुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाइ।
मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥
करुण रस का स्थायी भाव क्या होता है?
करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
करुण रस की परिभाषा क्या होती है?
करुण शब्द का प्रयोग सहानुभूति एवं दया मिश्रित दुःख के भाव को प्रकट करने के लिये किया जाता है। अतः जब स्थायी भाव, विभाव अनुभाव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर आस्वाद रूप धारण करता है तब इसे करुण रस कहते हैं।
शान्त रस का स्थायी भाव क्या होता है?
शान्त रस का स्थायी निर्वेद या वैराग्य है।
वात्सल्य रस क्या होता है?
वात्सल्य रस माता का अपने पुत्र के प्रति अपार प्रेम, गुरु का शिष्यों के प्रति प्रेम, बड़े भाई या बहन का छोटे भाई-बहन के प्रति प्रेम स्नेह को बताता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल (अनुराग) है।
निष्कर्ष
इस आर्टिकल में हमने रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण को विस्तार से बताया है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। इस लेख के बारे में अपने विचार या सुझाव हमें बताये। इसी तरह के और आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए हमारे वेबसाइट स्टडी डिसकस और सोशल मीडिया यूट्यूब, टेलीग्राम, फेसबुकऔर इन्स्टाग्राम पर फॉलो करे।