भारत जैसे विविधता से भरपूर देश में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार विशेष महत्व रखता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में इस अधिकार की स्पष्ट व्याख्या की गई है। इन अनुच्छेदों के तहत, संविधान यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय नागरिकों को उनके धर्म, पूजा, धार्मिक शिक्षा, और उपासना में पूरी स्वतंत्रता होगी। इस लेख में धार्मिक स्वतंत्र का अर्थ, महत्त्व औरअनुच्छेद 25 से 28 तक सभी अनुच्छेदों को विस्तार से समझाया गया है।
एक बार एक गाँव में कुछ बच्चे थे। उनमें से कुछ बच्चे हिंदू थे, कुछ मुस्लिम, कुछ ईसाई और कुछ सिख थे। सभी बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते थे। स्कूल में एक दिन क्रिसमस की पार्टी होती है, और कुछ बच्चे उस दिन चर्च जाना चाहते हैं, जबकि कुछ नहीं जाना चाहते। स्कूल ने किसी बच्चे को जबरदस्ती चर्च जाने के लिए नहीं कहा, क्योंकि हर किसी को अपना धर्म मानने और पूजा करने का अधिकार है। इसी तरह, स्कूल में किसी बच्चे को किसी खास धर्म का पालन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता। सभी बच्चों ने अपनी पसंद से अपनी पूजा की और सब खुशी से रहे।
धार्मिक स्वतंत्रता (Religion Freedom Article) का अर्थ
धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब है कि हर किसी को अपने धर्म को मानने, पूजा करने और अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की पूरी आज़ादी है। यह अधिकार हमें यह तय करने की स्वतंत्रता देता है कि हम कौन सा धर्म मानेंगे और कैसे पूजा करेंगे।यह अधिकार केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता, सहिष्णुता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का एक मजबूत माध्यम है, जो लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता है।
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धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वह अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं को चुनने, पालन करने, और उसे खुले तौर पर व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह अधिकार न केवल किसी विशेष धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी धार्मिक आस्थाओं या विश्वासों के आधार पर भेदभाव, उत्पीड़न, या दमन का शिकार न हो।
अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वह अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने, उसे व्यक्त करने, उसे प्रचारित करने, और उसके अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, बशर्ते वह सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के विरोध में न हो। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में स्पष्ट रूप से सुनिश्चित किया गया है।
- अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 27 – विशेष धर्म हेतु कर देने से मुक्ति
- अनुच्छेद 28 – शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना का प्रतिषेध
अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान में नागरिकों को “धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार” प्रदान करता है। यह अनुच्छेद प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 25 में मुख्य स्पष्टीकरण निम्न है
(अ). धर्म को मानने का अधिकार – हर व्यक्ति को यह स्वतंत्रता है कि वह अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को मान सकता है या किसी धर्म को न मानने का अधिकार रखता है। धर्म के चयन और विश्वास पर कोई बाध्यता नहीं है।
(ब). धर्म का पालन करने का अधिकार – व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा-अर्चना, अनुष्ठान, उत्सव या धार्मिक प्रथाओं का पालन कर सकता है। धार्मिक पोशाक, चिन्ह या प्रतीक (जैसे सिखों के लिए कृपाण, पगड़ी) अपनाने की स्वतंत्रता।
(स). धर्म का प्रचार करने का अधिकार – व्यक्ति अपने धर्म का प्रचार कर सकता है, लेकिन यह प्रचार दूसरों पर बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य करने की अनुमति नहीं देता।
अनुच्छेद 25 मुख्य तत्त्व
- सिक्खों को कृपाण धारण करने का अधिकार – अनुच्छेद 25(2) सिखों को धर्म के पालन के तहत कृपाण धारण करने और पगड़ी पहनने का विशेषाधिकार देता है।
- हिन्दू शब्द में जैन, सिक्ख, बौद्ध सम्मिलित है।
- यह अधिकार व्यक्ति को दिया गया है, न कि किसी समुदाय या धर्म को।
- भारत में रहने वाला हर नागरिक, चाहे वह भारतीय हो या विदेशी, अनुच्छेद 25 के तहत अधिकारों का उपयोग कर सकता है।
अनुच्छेद 25 पर लगाए गए प्रतिबंध
अनुच्छेद 25 के अधिकार पूर्ण नहीं हैं। इन्हें निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिबंधित किया जा सकता है
- सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) – किसी धार्मिक गतिविधि से यदि समाज में अशांति फैलती है, तो सरकार इसे रोक सकती है। उदाहरण – बलपूर्वक धर्मांतरण, हिंसात्मक धार्मिक प्रदर्शन।
- नैतिकता (Morality) – धार्मिक प्रथाएँ जो समाज की नैतिकता के विरुद्ध हों, उन्हें अनुमति नहीं है। उदाहरण- सती प्रथा।
- स्वास्थ्य (Health) – ऐसी धार्मिक प्रथाएँ जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करें, वे प्रतिबंधित की जा सकती हैं। उदाहरण – किसी अनुष्ठान में विषैले पदार्थों का उपयोग।
- अन्य मौलिक अधिकार (Other Fundamental Rights) – यदि किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता अन्य व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को हानि पहुंचाती है, तो इसे सीमित किया जा सकता है।
अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता को व्यक्तिगत स्तर पर मजबूत बनाता है और भारत की धर्मनिरपेक्षता का आधार है। हालांकि, यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी धर्म की स्वतंत्रता समाज और अन्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित न करे।
अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26 धार्मिक संगठनों और समूहों को उनके धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार प्रदान करता है। इसका उद्देश्य धार्मिक संस्थाओं को अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता देना है, बशर्ते यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के विपरीत न हो।
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प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसका कोई भी वर्ग, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, निम्नलिखित अधिकारों का आनंद लेने के लिए स्वतंत्र होगा-
- धार्मिक कार्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण करने का अधिकार – हर धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक, दान-पुण्य या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए संस्थानों को स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार है।उदाहरण – मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, आश्रम आदि।
- अपने धार्मिक मामलों का स्वतंत्र प्रबंधन – धार्मिक समुदाय अपने धार्मिक मामलों और अनुष्ठानों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं। उदाहरण: पूजा, उत्सव, त्योहारों का आयोजन।
- संपत्ति प्राप्त करने और उसे बनाए रखने का अधिकार – धार्मिक समुदाय अपनी धार्मिक गतिविधियों के लिए संपत्ति (जमीन, धन) प्राप्त कर सकते हैं और उसे अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकते हैं।
- धार्मिक संस्थान और समुदाय अपनी संपत्ति का प्रबंधन अपने नियमों और जरूरतों के अनुसार कर सकते हैं।
अनुच्छेद 26 पर प्रतिबंध और सीमाएँ
अनुच्छेद 26 के अधिकार पूर्ण नहीं हैं। इन्हें निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिबंधित किया जा सकता है
- सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) – यदि किसी धार्मिक समुदाय की गतिविधियाँ समाज की शांति या व्यवस्था को भंग करती हैं, तो राज्य हस्तक्षेप कर सकता है। उदाहरण – धार्मिक स्थलों पर हिंसात्मक गतिविधियाँ।
- नैतिकता (Morality) – धार्मिक गतिविधियाँ समाज की नैतिकता के विरुद्ध नहीं होनी चाहिए। उदाहरण – दहेज प्रथा, सती प्रथा जैसे प्रथाओं पर रोक।
- स्वास्थ्य (Health) – धार्मिक गतिविधियाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होनी चाहिए। उदाहरण – त्योहारों में प्रदूषण फैलाने वाले कार्यों पर रोक।
अनुच्छेद 26 बनाम अनुच्छेद 25
- अनुच्छेद 25 – व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 26 – समुदाय और धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों को संरक्षित करता है।
अनुच्छेद 26 भारतीय लोकतंत्र में धार्मिक समुदायों को उनके अधिकार और स्वायत्तता सुनिश्चित करता है। यह प्रावधान धार्मिक विविधता को संरक्षित करते हुए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मजबूत करता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं के अधीन है, ताकि धर्म और समाज में संतुलन बना रहे।
अनुच्छेद 27: विशेष धर्म हेतु कर देने से मुक्ति
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 27 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या पालन के लिए कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान भारत के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मजबूत करता है और सरकार को धार्मिक तटस्थता बनाए रखने का निर्देश देता है।
- किसी भी व्यक्ति को उस कर के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, जिसका उपयोग विशेष रूप से किसी धर्म या धार्मिक संप्रदाय के प्रचार या रखरखाव के लिए किया जाता है।
- इस प्रकार यह अनुच्छेद धर्मनिरपेक्षता और सर्व-धर्म सम्भाव की पुष्टि करता है।
- राज्य किसी विशेष धर्म के पक्ष में या उसके प्रचार-प्रसार के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग न करे।
- किसी भी नागरिक पर किसी धर्म विशेष के लिए कर लगाने का बोझ न पड़े।
- सभी धर्मों के प्रति समानता और निष्पक्षता बनाए रखी जाए।
अनुच्छेद 27 के मुख्य भाग
- कर लगाने की मनाही – राज्य को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी विशेष धर्म के प्रचार या रखरखाव के लिए किसी प्रकार का कर लगाए।
- करों का उपयोग – करों से प्राप्त धन का उपयोग धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा आदि।
- करों और फीस के बीच अंतर – यह अनुच्छेद केवल “करों” पर लागू होता है, न कि “फीस” पर।
- कर (Tax): राज्य की आय बढ़ाने के लिए लगाया जाता है।
- फीस (Fee): विशेष सेवाओं के बदले में लिया जाता है।
उदाहरण: मंदिर में प्रवेश के लिए ली गई फीस अनुच्छेद 27 के तहत नहीं आती।
अनुच्छेद 27 की सीमाएँ
अनुच्छेद 27 भारतीय संविधान में धार्मिक करों से मुक्त होने का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और इसकी कुछ सीमाएँ हैं। ये सीमाएँ इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि अनुच्छेद 27 का दुरुपयोग न हो और राज्य अपने धर्मनिरपेक्ष कर्तव्यों को निभा सके।
- सांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष गतिविधियाँ – यदि राज्य का उद्देश्य धार्मिक न होकर सांस्कृतिक या ऐतिहासिक है, तो वह धन का उपयोग कर सकता है। उदाहरण- ताजमहल या सोमनाथ मंदिर के रखरखाव के लिए धन खर्च करना।
- सामान्य सेवाओं का वित्तपोषण – धार्मिक संस्थानों को दी जाने वाली सेवाएँ (जैसे पुलिस सुरक्षा, पानी, सफाई) के लिए कर लगाया जा सकता है।
- सरकारी अनुदान – राज्य धार्मिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है, बशर्ते यह धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों (जैसे शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण) के लिए हो।
अनुच्छेद 27 भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी विशेष धर्म का पक्ष न ले। यह प्रावधान नागरिकों को धार्मिक करों से मुक्त रखता है और करों के उपयोग को धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों तक सीमित करता है।
अनुच्छेद 28: शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना का प्रतिषेध
अनुच्छेद 28 यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी सहायता प्राप्त या सरकार द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती और विद्यार्थियों को किसी धार्मिक उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह अनुच्छेद धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है।
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अनुच्छेद 28 भारतीय संविधान में शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा और उपासना से संबंधित प्रावधान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखना है। इसके मुख्य प्रावधान निम्न है
पूर्ण निषेध (राज्य के पूर्ण नियंत्रण में संस्थान) – अनुच्छेद 28(1) के अनुसार, राज्य द्वारा पूर्णत: वित्तपोषित या संचालित संस्थानों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती। उदाहरण – सरकारी स्कूल, सरकारी कॉलेज, आदि।
आंशिक निषेध (राज्य की सहायता प्राप्त संस्थान) – अनुच्छेद 28(2) के अनुसार, यदि कोई राज्य की सहायता प्राप्त या मान्यता प्राप्त निजी संस्थान धार्मिक शिक्षा प्रदान करना चाहता है, तो यह उस संस्थान की नीति पर निर्भर करेगा।
धार्मिक उपासना में भाग लेने की स्वतंत्रता – अनुच्छेद 28(3) के अनुसार, किसी भी व्यक्ति (छात्र या कर्मचारी) को किसी शिक्षण संस्थान में धार्मिक उपासना या शिक्षा में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यह प्रावधान विशेष रूप से उन संस्थानों पर लागू होता है जो सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं।
अपवाद (धार्मिक संस्थाओं द्वारा संचालित संस्थान) – अनुच्छेद 28(4) के तहत, ऐसे शिक्षण संस्थान जो धार्मिक न्यासों या धार्मिक संस्थाओं द्वारा स्थापित और संचालित होते हैं, उनके लिए धार्मिक शिक्षा या उपासना प्रतिबंधित नहीं है। उदाहरण – मदरसा, गुरुकुल, मिशनरी स्कूल।
अनुच्छेद 28 के व्यावहारिक उदाहरण
यहाँ हम अनुच्छेद 28 से सम्बंधित कुछ व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से समझते है की यह किस प्रकार लागू होता है और हमारे जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है। निचे कुछ उदाहरण दिया गया है, जी निम्न है-
- सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा प्रतिबंधित – किसी भी सरकारी स्कूल में किसी धर्म विशेष की शिक्षा नहीं दी जा सकती धार्मिक अनुष्ठान या प्रार्थनाएँ राज्य के पूर्ण नियंत्रण वाले स्कूलों में निषिद्ध हैं।
- निजी संस्थानों में सीमित धार्मिक शिक्षा – यदि कोई निजी स्कूल (जो राज्य से सहायता प्राप्त है) धार्मिक शिक्षा देता है, तो छात्रों को इसमें भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- मिशनरी स्कूल और धार्मिक संस्थाएँ – ईसाई मिशनरी स्कूल, मदरसे, और गुरुकुल जैसे संस्थान धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं। यह अनुच्छेद 28 के तहत निषिद्ध नहीं है।
अनुच्छेद 28 शिक्षा प्रणाली में धर्म और धार्मिक गतिविधियों को सीमित करके धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखता है। यह छात्रों और शिक्षकों को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा या उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य होने से बचाता है। हालांकि, यह प्रावधान धार्मिक संस्थानों की धार्मिक शिक्षाओं को प्रतिबंधित नहीं करता।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Religion Freedom Article) केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि एक समृद्ध और विविध समाज के निर्माण का आधार है। यह अधिकार न केवल यह सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म (Religion) का पालन करने का अधिकार है, बल्कि यह समाज में सहिष्णुता, समानता और शांति को भी बढ़ावा देता है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Religion Freedom Article) यह मान्यता देता है कि धर्म एक व्यक्तिगत चुनाव है, और किसी भी व्यक्ति को अपनी आस्थाओं के लिए उत्पीड़ित या दबाव में नहीं डाला जा सकता।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वह अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने, उसे व्यक्त करने, उसे प्रचारित करने, और उसके अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, बशर्ते वह सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के विरोध में न हो। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में स्पष्ट रूप से सुनिश्चित किया गया है।
अनुच्छेद 25 से 28 तक क्या है?
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28 तक निम्न है
अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 27 – विशेष धर्म हेतु कर देने से मुक्ति।
अनुच्छेद 28 – शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना का प्रतिषेध।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 क्या है?
अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान में नागरिकों को “धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार” प्रदान करता है। यह अनुच्छेद प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है। अर्थात आप जिस धर्म को चाहें, उसे मान सकते हैं। अगर आप पूजा करना चाहते हैं, तो आप अपने धर्म के तरीके से पूजा कर सकते हैं।
आर्टिकल 28 क्या कहता है?
आर्टिकल 28 कहता है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को किसी खास धर्म के बारे में नहीं सिखाया जा सकता। हर बच्चे को यह स्वतंत्रता है कि वह किस धर्म को माने। उदाहरण अगर आपके स्कूल में किसी धर्म की पूजा होती है, तो आप उस पूजा में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं हैं।
- आखिरी अपडेट: 4 मिनट पहले
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