Woman Empowerment in Hindi | महिला सशक्तिकरण पर प्रोजेक्ट

आज का यह टॉपिक महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) पर है। हमारे समाज में नारी का क्या स्थान है इसके बारे में विस्तृत में बताया गया है। या टॉपिक कॉलेज के प्रोजेक्ट के रूप में दिया जाता है। निचे हमने नारी सशक्तिकरण पर प्रोजेक्ट तैयार किया है जो आप सभी के लिए बहुत ही उपयोगी होगा।

महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य ऐसी विचारधारा से है जो महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने उन्हें आत्म-निर्णय का अधिकार प्रदान करने, समाज में समता आधारित भागीदारी सुनिश्चित करने का समर्थन करती है।

1प्रस्तावना
2परिभाषा/अर्थ
3आवश्यकता क्यों
4भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
5   भारत में महिलाओं की आर्थिक स्थिति
6भारत में महिलाओ की राजनैतिक स्थिति
7  भारत में महिलाओ की सामाजिक स्थिति
8  महिला सशक्तिकरण के समक्ष चुनौतिया
9  वैश्वीकरण का  महिलाओ पर प्रभाव
10  सुझाव
11   भारत में महिला आन्दोलन
11.119 वी सदी में महिला आन्दोलन
11.220 वी सदी में महिला आन्दोलन
11.321 वी सदी में महिला आन्दोलन 21 वी सदी में महिलाओ से जुड़े मुद्दे
12महिअलो के राष्ट्र निर्माण में भूमिका
13महिला सशक्तिकरण के लाभ
14महिला संगठनो में पुरषों की उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता क्यों
15महिला संगठन
16निष्कर्ष

प्रस्तावना – महिला सशक्तिकरण

आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि–ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।

  • लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती हैं।
  • राष्ट्र के विकास में महिलाओं का महत्त्व और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है।
    भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे – दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।
  • अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ महिलाएँ अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत में अनपढ़ो की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है।
    नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आयेगा जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी और उन्हें इस काबिल बनाया जाएगा कि वो हर क्षेत्र में स्वतंत्र होकर फैसले कर सकें।

Woman Empowerment in Hindi | महिला सशक्तिकरण क्या है?

सशक्तिकरण शब्द अंग्रेजी भाषा के EMPOWERMENT शब्द का हिन्दी रूपांतरण है। “EM” एक फ़्रांसिसी उपसर्ग है जिनका अर्थ होता है – में। अतः सशक्तिकरण का शाब्दिक अर्थ है शक्ति में होना अर्थात सशक्त होना। इस प्रकार महिला सशक्तिकरण महिलाओ के होने से है। स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।

दूसरे शब्दों में – महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके।
आसान शब्दों में – महिला सशक्तिकरण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाओं में उस शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।

Moral Stories in Hindi | हिंदी की टॉप 10 नैतिक कहानियां

  • महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों है?

हम लोकतंत्र में जी रहे है हम एक तरफ कहते है की हमारा देश सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है पर उस देश की आधी आबादी का तो लोग सुनने को तैयार नही है लोकतंत्र तो सच्चे अर्थो में तब होगा जब देश का प्रत्येक नागरिक जो न केवल पुरुष के रूप में, महिलाओ के रूप में भी अपनी भागीदारी को सुनिश्चित कर सके।

  • समाज की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व

समाज की लगभग आधी आबादी होकर भी इसका प्रतिनिधित्व बहुत कम है,हमारे विधानसभाओ ने हमारे लोकसभाओ में इनकी संख्या नही के बराबर है हम सशक्तिकरण के लक्ष्य को इसलिए अर्जित नही कर पा रहे है क्योकि इसका अभी भी प्रतिनिधित्व नही है।

  • लैंगिंग समता स्थापित करने के लिए

लैंगिग समता स्थापित करना बहुत जरुरी है क्योकि वह केवल और केवल पुरुष और महिला मनुष्य के दो रूप है पर वह दो अलग अलग मनुष्य के रूप में देखा जायेगा तब तक हम उनको बराबरी के अधिकार नही दे पाएंगे महिलाओ का अपर्याप्त प्रतिनिधि लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है।

  • समावेशी विकास महिलाओ की भागीदारी के बिना असंभव

बगैर महिलाओ के विकास के समावेशी विकास नही किया जा सकता जब आधी आबादी का विकास ही नही होगा तो समावेशी विकास असम्भव है।

  • आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए

यदि भारत में महिलाओ को पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते है और श्रम बल में उनकी भागीदारी पुर्सो के बराबर हो जाये तो भारत की विकास दर 27% तक बड़ सकती है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका

भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जाती हैं। इनमें से कई सारी योजनाएँ रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों से सम्बंधित होती हैं। इन योजनाओं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं।
महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा।

1. बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना

यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर उनके परिवार में फैली भ्रांति लड़की एक बोझ है की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

2. महिला हेल्पलाइन योजना

इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, महिलाएँ अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस योजना के तहत निर्धारित नंबर पर कर सकती हैं। इस योजना के तरत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके महिलाएँ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं।

3. उज्जवला योजना

यह योजना महिलाओं को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए शुरू की गई है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।

4. सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन

स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वंय का रोजगार शुरु कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछली पालन आदि के विषयों में महिलाओं को शिक्षित किया जाता है।

5. महिला शक्ति केंद्र

यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।

6. पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण

2009 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायती राज संस्थानों में 50 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की, सरकार के इस कार्य के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया। जिसके द्वारा बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के साथ ही दूसरे अन्य प्रदेशों में भी भारी मात्रा में महिलाएँ ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।

7. संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा भी कुछ अधिनियम पास किए गए हैं। वे अधिनियम निम्नलिखित हैं:

  • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
  • दहेज रोक अधिनियम 1961
  • एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976
  • मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987
  • लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013

भारत में महिलाओ की स्थिति

(1). भारत में महिलाओ की आर्थिक स्थिति

  • 2020 में प्रकाशित विश्व बेंक की रिपोर्ट “वुमेन बिजनेस एंड लॉ 2020” के अनुसार आर्थिक तौर पर महिलाओ को सशक्त बनाने के मामले में विश्व के 190 देशो में भारत का स्थान 117 वा है।
  • 2019 में सयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट Progress of the Worlds Woman 2019-2020 में कहा गया की आर्थिक वृद्धि होने के बावजूद भारत में महिलाओ की श्रम बल में निरंतर गिरावट आ रही है।
  • श्रम बल में महिलाओ के गिरावट के सम्बन्ध में विश्व में पहले स्थान पर है जो की चिन्तनी है।
  • अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिग असमानता को 25% कम कर लिया जाता है तो इससे देश की GDP में 1 ट्रिलियन डॉलर तक की वृद्धि हो सकती है। यदि पूरी महिलाये भारत में आर्थिक क्षेत्र में भागीदारी बने तो जो मोदी जी का सपना है 5 ट्रिलियन डॉलर इकोमोनिक मुझे लगता है वो न केवल प्राप्त कर लिया जायेगा बल्कि हो सकता है हम 10 ट्रिलियन डॉलर इकोनोमी पर भी पहुच जायेगा। यदि भारत को इस समय अपनी आर्थिक प्रगति को सबसे  तीव्र करना है तो उसे अपनी आधी आबादी ( महिला ) पर ध्यान देना होगा।
  • भारत की लगभग अधि आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओ का भारत की GDP में योगदान 20% से भी कम है।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2018-2019  के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य स्थलों पर महिलाओ की भागीदारी 35.8% से घटकर 26.4% ही रह गयी है।
  • विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में आर्थिक भागीदारी अंतर 3% बड़ा है।
  • पेशेवर और तकनिकी भूमिकाओ में महिलाओ के हिस्से दारी 29.2% तक घट गयी है।

ये आकडे चिंता का विषय है ये आकडे बताते है की भारत में महिला सशक्तिकरण क्यों जरुरी है। ये आकडे बताते है भारत में यदि महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) के लक्ष्य को पूरा कर पाए तो भारत निश्चित ही उस लक्ष्य को हासिल कर आयेगा जिसके लिए ओ उम्मीदे कर रहा है।

खेल पर निबंध | मेरा प्रिय खेल पर निबंध

(2). भारत में महिलाओ की राजनितिक स्थिति

  • भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में जारी आकड़ो के अनुसार संसद के दोनों सदनों में महिला सांसदों का कुल प्रतिशत केवल 11% है। जबकि सभी राज्य विधानसभाओ में कुल महिला प्रतिशत 9% ही है। अतः महिलाओ के लिए संसद में 33% आरक्षण संबंधी विधेयक को पारित करने की आवश्कता है।
  • वर्ष 2020 में ‘लोकनीति’ नामक एक गैर–सरकारी संगठन द्वारा किये गए सर्वे में दो–तिहाई से अधिक महिलाओ ने स्वीकार किया की पुरुषो के राजनितिक वर्चश्व के कारण महिलाओ को राजनितिक में अवसर नहीं मिलता है।
  • सर्वे में यह बात भी स्पष्ट हुई की अधिकांश महिलाओ को घरो में राजनितिक निर्णय लेने में उन्हें कम स्वायत्तता प्राप्त होती है।

इसका मुख्य कारण पितृसत्तात्मक समाज तथा रुढ़िवादी सामाजिक ढाचा है। जब परिवार में ही उनके निर्णय को नही सुना जाता है तो समाज कैसे स्वीकार करे की राजनितिक रूप में एक महिला उनके क्षेत्र का निर्णय लेगी।

इतिहास में याद करे तो रजिया सुल्तान में सक्ष्मता है योग्यता है। लेकिन समाज केवल और केवल उसके महिला होने के कारण उसे स्वीकार नही किया। किसी में योग्यता होने के बावजूद सक्ष्मता होने के बावजूद भी उसे केवल और केवल महिला होने के कारण अवसर नही दिया गया तो मुझे लगता है इससे बड़ा अपराध नहीं हो सकता।

केवल महिला होने के कारण यदि उनकी योग्यता को दबाया जा राह है तो निश्चित ही बहुत बड़ा पाप किया जा रहा है। सर्वे में लगभग 66% महिलाओ ने कहा की वे राजनितिक निर्णय लेने के मामले में अभी भी स्वायत्ता नहीं है।

(3). भारत में महिलाओ की सामाजिक स्थिति

भारत में लगभग सभी धर्मो और वर्गों में समाज की मुख्य धारा में महिलाओ में सक्रिय भूमिका की स्वीकार्यता नहीं रही है। कई सारे धर्म है। भारत में प्रत्येक धर्म अपने-अपने स्तर पर कई सरे आडम्बर कर राहा होगा। लेकिन किसी भी धर्म में महिलाओ को वह वजूद नहीं दिया। महिलाओ को वह स्थान नहीं दिया जिसकी वो अधिकारी थी क्योकि वो एक मनुष्य है और एक मनुष्य होने के नाते उसे अपनी मानवीय जीवन के निर्णय लेने की पूरी क्षमताए थी। विदेशो में मिलने वाले बाकि धर्मो में भी स्थिति यही है।

जगह बदले, धर्मं बदले, लोग बदले लेकिन महिलाओ की स्थिति दयनीय बनी रही

कई बार चिंताए होती है कही यह निरंतर तो नहीं चलता रहेगा

  • वर्ष 2019 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में औसतन प्रत्येक घंटे में एक महिला की मृत्यु दहेज़ संबंधी कारणों से होती है।
  • बाल विवाह उच्च प्रजनन क्षमता न्यूनतम मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ और महिलाओ की निम्न सामजिक स्थिति का एक प्रमुख निर्धारक है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2020 के नवीनतम आकडे के अनुसार 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओ की हिस्से दारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले सदी की थी, पिछले पाच वर्षो में 27% से घटकर 23% हो गयी है।

महिला सशक्तिकरण के समक्ष चुनौअतिया

  • पुरुष प्रधान समाज

समाज में ऐसे मानसिक वाले लोग भी है जिनको लगता है की पृथ्वी पर एक महिला ने मानव के रूप में जन्म नही लिया है। उसने एक महिला के रूप में जन्म लिया है।

तो भारतीय समाज जब तक एक पुरुष प्रधान समाज रहेगा हर जगह पर निर्णय पुरुषो के द्वारा लिए जायेंगे फिर वो पंचायत हो, नगरपालिका हो, विधानसभा हो, या संसद भवन हो जब तक की पुरषों की प्रधानता बनी रहेगी महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) उधुरा बन जाएगा। जब तक महिलाओ का इससे प्रतिनित्व नही बड़ेगा जब तक की परिवार के अंदर महिलाए अपनी बात को नही रख पाएगी। तब तक महिला सशक्तिकरण अपने लक्ष्य को हासिल नही कर पायेगा।

  • रुढ़िगत परम्पराये जिन्हें धर्म के आधार पर उचित करार देने का प्रयास किया जाता है  

यदि महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) में देखेगे तो कई सारे ऎसी परम्परा है जैसे – ट्रीपल तालाख का जो मुद्दा था, इसे धर्म के रूप में न देखे तो यह भी महिला शोषण का एक तरीके से विकल्प बन रहा था। भारतीय समाज में हिन्दू धर्म में भी कई सरे रुदिगत विचार अभी भी है।जरूरत है की भारत में अब जो पपुराने विचार थे उसका पुनह तर्किक्ताओ के अधार पर निरिक्षण किया जाये।

  • राजनैतिक असंवेदनशील

33% महिला आरक्षण लोकसभा आज तक इस बिल को पारित नही कर पाई है। यह स्पष्ट है की राजनैतिक रूप से सरकार वादे तो बड़ी करती है महिलाओ को देवी मानकर एक मूर्ति की स्थापना और एक मंदिर का निर्माण करना चाहती है। लेकिन लोकतंत्र के सबसे बड़े महल में लोकतंत्र के सबसे बड़े स्थान पर एक 33% की जगह अपने साथ देने के लिए तैयार नही है।

  • शिक्षा का अभाव

कई बार चीजो को नही जानना, जानकारियों का आभाव होना महिलाओ के शोषण का कारण बन जाता है। देखा जाता है की आशिक्षित महिलाओ के शोषण की दर है वो शिक्षित महिलाओ की तुलना में दोगुनी है। तो जितना ज्यादा शिक्षा का बेहतर प्रसार होगा वो आधिकारो से अवगत होगी अपने निर्णय निर्णय लेने में सक्षम हो पायेगी। उतना ही ज्यादा महिलाओ में मजबूती और सशक्तिकरण आयेगा।

General Knowledge Questions | सामान्य ज्ञान 500+ महत्वपूर्ण प्रश्न

  • कार्यस्थल पर महिलाओ का योंन शोषण

कई सारे कार्य स्थल पर महिलाओ को कई प्रकार के योंन शोषण वो कथनों के रूप में हो सकता है। वो शब्दों के रूप में हो सकता है इसरो के रूप में हो सकता है, कई प्रकार के चीजो को झेलना पड़ता है यह कही न कही भारतीय सिनेमा का भी दोष है।

महिलाओ को जिस तरीके से भारतीय सिनेमा जगत प्रस्तुत करने की कई बार कोशिश करता है। अधिकतर प्रेम और प्रेमिका के रूप में जो दृष्टान्त दिखाया जा रहा है ईस एक अयाम को दिखने के कारण भारतीय जो युवा है उन्हें ऐसा लगता है की उनके जीवन में महिलाओ का केवल एक रोल है और वह रोल जो हिन्दी सिनेमा जगत उन्हें दिखा रहा है।

  • महिलाओ के लिए पर्याप्त सुरक्षित परिवेश न होना

इसके लिए जरुरत है समाजिक परिवर्तन की किसी को अपमान का भाव लगे ऐसा दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए। कई बार गरीबी भी महिला सशक्तिकरण के लिए अवरोध उत्पन करती है। एक आमिर लड़की की तुलना में एक गरीब लड़की का शोषण 10 गुना होता है। यदि वह गरीब होने के साथ निम्न जाती की हो तो यह शोषण 100 गुना बढ़ जाता है।

वैश्वीकरण का महिओं पर प्रभाव

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के विस्तार से समाज में संस्थागत एवं संरचनात्मक विकास को बढ़ावा मिला है। कई सारे संस्थाए बने जहा पर महिला शिक्षाओ को बढ़ावा दिया गया। महिलाओ के सशक्तिकरण के लिए आवाज उठानें वाली वैश्विक संस्थाए भी भारत में आयी।
  • वैश्वीकरण के अंतर्गत समाज के उस वर्ग को अधिक लाभ हुआ है जो अधिक योग्य शिक्षित तथा सक्षम था। इससे समाज के वंचित शोषित एवं हाशिये पर रहे लोगो को लाभ नहीं हुआ किन्तु नुकसान अवश्य हुआ है।
  • वैश्वीकरण के दौर में महिलाओ के प्रति समस्यो में वृद्धि हुयी है।
  • बढ़ते मशीनीकारण से नौकरियों में असुरक्षा कम वेतन परम्परागत कौसल की उपेक्षा विदेसी कंपनियों की मनमानी शर्ते और उनके समक्ष कानून की असमर्थता आदि उलेखनीय समस्याये है।
  • बहुरास्ट्रीय कंपनियों के अंतर्गत महिलाओ का वस्तुकरन हो गया है। बढ़ी कम्पनीय अपनी सेवाओ तथा वस्तुओ को बचाने लिए महिलाओ की योग्यता क्षमता तथा व्यक्तित्वा का प्रयोग करती है।
  • वैश्वीकरण के इस युग में महिलाओ के वस्तूकरण एवं वैव्शयीकरण को भारतीय समाज पर नकरात्मक प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है, उपयुक्त नकरात्मकताओ के बावजूद वैश्वीकरण के कुछ सकरात्मक पहलु भी है।
  • बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के द्वारा महिलाओ को राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में भागीदार बनाये जाने के प्रयत्न किये जा रहे है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत महिलाओ के अनुकूल रोजगार निर्माण किया जा रहा है ताकि योग्य तथा सक्षम महिलाये राष्ट्र के आर्थिक विकास में सक्रिय भागीदारी निभा सके।
  • भारत में लगभग 43% महिलाये विज्ञानं प्रौधोगिकी इंजीनियरिंग और गणित में स्नातक है जो दुनिया में सबसे अधिक है।

सुझाव

  • प्रारंभिक शिक्षा तथा उच्चा शिक्षा को बढ़ावा देना
  • वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना – वैज्ञानिक सोच का मतलब ये है की महिलाये शाररिक रूप में पुरूषों के बराबर सक्षम भले ही न हो लेकिन मानसीक रुप में वो पुरुषो से किसी तरीके से कमजोर नहीं है।
  • महिलाओ के साथ जुड़े अपराधो का त्वरित निपटारा – महिलाओ के साथ जुड़े अपराधो का त्वरित निपटारा करना ताकि महिलाओ के प्रति जो अपराध लोग करते है उन्हें पता चले की परिणाम भयानक हो सकते है।
  • कार्यस्थल पर महिलाओ के लिए सुरक्षित वातावरण निर्मित करना।
  • लैंगिग समता विरोधी गतिविधियों पर अंकुश करना – कुछ लोग ऐसे भी होते है जो महिला सशक्तिकरण का विरोध करने लग जाते है,महिलाओ को संसद एवं राज्यविधान मंडल में एक तिहाई आरक्षण देने वाले लंबित विधेयक को शीघ्र पास किया जाय। महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) की दिशा में ग्रामीण स्तर पर अधिक ठोस प्रयास करने चाहिए।

भारत में महिला आन्दोलन

19 वी सदी में महिला आन्दोलन

 इसमें पर्दा प्रथा, बाल विवाह, शिक्षा का आभाव, संपत्ति के अधिकारों में असमानता, सती प्रथा, बहु पत्नी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबन्ध आदि महिलाओ की निम्न स्थिति हेतु उत्तरदायी कारक थे। 19वी सदी से लेकर वर्तमान समय तक महिअलो से सम्बंधित विषयो व उनकी स्थिति में सुधार के लिए समय समय पर अनेक आन्दोलन किये गये।

  • सर्वप्रथम समाज सुधारक राजाराममोहन राय ने सती प्रथा के विरुध जन जागरूकता की शुरुवात की, इसके पश्चात महिला समस्याओ के निवारण हेतु अनेक आन्दोलन किये गए। महिअलो के आन्दोलन का विषय व स्वरुप प्रत्येक सदी में परिवर्तित होता रहा 19वी व 20वी सदी में यह जन जागरूकता क़ानूनी सुधारो के रूप में परिणित हुआ।
  • वही 21वी सदी में कोर्ट के निर्णयों, शिक्षा के आधुनिकीकरण व वैश्विकरण ने महिला आंदोलनों को दिशा प्रदान की है। महिला सुधार में अनेक समाज सुधारको जैसे- राजाराममोहन राय, इश्वरी चन्द्र विद्यासागर, बी.एम.मालाबारी आदि ने महवपूर्ण योगदान दिया।
  • वर्ष 1829  में बंगाल रेगुलेशन एक्ट के द्वारा सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया।
  • हिन्दू पुनर्विवाह  अधिनियम 1856  द्वारा विधवा पुनर्विवाह को वैध घोषित किया।
  • महिला शिक्षा की दिशा में वर्ष 1849  में बेथुन स्कूल की स्थापना की गयी| और इसके आलावा ईश्वर चन्द्र विद्या सागर ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये।
  • वर्ष 1854 के चार्ल्स वुड डिस्पैच में भी स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन पर बल दिया गया।

ITI Ka Full Form | आईटीआई का फुल फॉर्म क्या है?

20 वी सदी में महिला आन्दोलन

इस समय राष्ट्रिय कांग्रेस की स्थापना हो गयी थी, 20वी सदी में अब हम राष्ट्र के रूप में उदयमान हो रहे थे। राष्ट्रवादी के बड़े नेता महिलाओ को राष्ट्रवादी आन्दोलन के साथ जोड़ने का प्रयाश कर रहे थे। क्रांतिकारियों ने महिलाओ की भूमिका को मजबूत करने के लिए कई तरीके के कदम उठाए थे। 20वी सदी में महिलाओ को बराबरी के आधिकार देने की मांग प्रारम्भ हुई। इसी सदी में महिला आन्दोलन स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के साथ ही चला।

  • इस काल में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस व अन्य सामाजिक व राजनैतिक संगठनो ने महिलाओ से सम्बंधित मुद्दों को उठाया तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की।
  • वर्ष 1914 में स्त्री चिकित्सा सेवा शुरू की गई और इसके आलावा पुणे में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।
  • 1916  में लेडी हार्डिंग मेडिकल कोल्लागे की स्थापना ने स्त्री स्वास्थ व स्रियो की चिकित्सा व शिक्षा में भागीदारी को बढावा दिया।
  • इस काल में महिलाओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भागीदारी की। सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी आदि अनेक महिलाओ ने स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व किया।
  • 1927 में अखिल भारती महिला कांग्रेस का गठन किया गया और 1931 में कराची आधिवेश नागरिको के मूल अधिकार की घोषणा की गई जिसमें महिअलो के लिए समानता के अधिकार का प्रावधान किया।
  • स्वतंत्रता के पश्चात इन अधिकारों को संविधान में सामाहित किया गया, अनुच्छेद 15 व 16 समानता और भेदभाव का निषेध करता है।
  • हिदू मैरिट एक्ट 1955, हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956 के द्वारा उत्तराधिकार में लैंगिग भेदभाव समाप्त किया गया।
  • मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के द्वारा कार्यरत माहिअलो के लाभ व सुवीधाओ के लिए अनेक उपायों की घोषणा की गई।
  • दहेज निवारण अधिनियम 1986  ने महिलाओ के प्रति दहेज़ अपराधो को रोकने का सामर्थ प्रयास किया| घरेलु हिंसा, कार्यालयों में उत्पीडन बलिका भ्रूण हत्या का निषेध आदि की दिशा में विधि निर्माण द्वारा सामर्थ प्रयास किये गए।

21 वी सदी में महिलाओ के मुद्दे व आन्दोलन

वर्तमान में महिलाओ के मुद्दे और आन्दोलन है महिलाओ की स्वतंत्रता महिलाओ को समानता 21 वी सदी में भारतीय महिला आन्दोलन ही नही वैश्विक महिला आन्दोलन एक नई उर्जा के साथ आगे बढ़ा इस नई उर्जा का कारण रहा जानकारी की पहुच इसने महिलाओ को सजग किया इसने महिलाओ को एक जुट किया तो 21 वी सदी में वैश्विक स्तर पर वे सारे आन्दोलन एकजुट हुए जहा महिलाओ की आवाज को बहुत ही स्पष्टता के साथ सभी समाज के वर्गों के मध्य रखा गया।

  • महिलाओ के प्रति हिंसा व लैंगिक शोषण को पुनः परिभाषित करने के अभियान के साथ ही पितृसत्तात्मक सोच के विरुद्ध समय-समय पर आवाज उठाई जाती रही है।
  • महिलाओ ने आर्थिक स्वतंत्रता चुनने का अधिकार, करियर के चुनाव की स्वतंत्रता आदि जैसे अधिकार प्राप्त किये।
  • लैंगिक आधार पर भेदभाव के विरुद्ध न्यायालय के माध्यम से संघर्ष 21वी सदी का प्रमुख महिला आन्दोलन है।
  • इस परिप्रेक्ष में सबरीमाला विवाह प्रमुख है।

21 वी सदी में महिलाओ से जुड़े मुद्दे

  • महिलाओ की स्थिति में सुधारो की अपेक्षा सशक्तिकरण पर अधिक बल।
  • स्वतंत्रता, समानता तथा सहभागिता।

19वी तथा 20वी सदी में जहा प्रमुखतः सामाजिक स्थिति में सुधारो पर बल दिया गया वही वर्तमान में समाज के साथ ही आर्थिक और राजनितिक जैसे प्रश्नों को भी समान महत्व दिया गया।

उदाहरण के लिए संसद में महिलाओ के लिए 50% के आरक्षण का मामला था। संघ लोक सिविल सेवा आयोग जैसे निकायों द्वारा महिलाओ की भागीदारी को महत्व प्रदान किया जाना।

विश्व के सभी देशो ने वादा कीया है की वो 2030 तक अपने देशो में महिलाओ के साथ होने वाले प्रत्येक भेदभाव को समाप्त कर लेंगे, न केवल आर्थिक स्तर पर बल्कि समाजिक और राजनितिक स्तर पर महिलाओ में जो भ्रूण हत्याये होते है उस पर प्रतिबन्ध लगायेंगे और प्रत्येक स्तर पर महिलाओ को पूरी तरह से बराबरी का दर्जा देंगे।

महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका

बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती हैं। अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है। महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। इसी वजह से राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी। अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया।

तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा। हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है।

आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। आज देश की महिलाएँ जागरूक हो चुकी हैं। आज की महिला ने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है।

आज की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। फिर चाहे काम मजदूरी का हो या अंतरिक्ष में जाने का। महिलाएँ अपनी योग्यता हर क्षेत्र में साबित कर रही हैं।

महिला सशक्तिकरण के लाभ

महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण (Woman Empowerment in Hindi) के बिना वह सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती। बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके।


महिला सशक्तिकरण के कारण महिलाओं की जिंदगी में बहुत से बदलाव हुए।
(i). महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है।
(ii). महिलाएँ अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर रही हैं।
(iii). महिलाएँ अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं।
(iv). पुरुष भी अब महिलाओं को समझने लगे हैं, उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं।
(v). पुरुष अब महिलाओं के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं। कहा भी जाता है कि – हक माँगने से नही मिलता छीनना पड़ता है और औरतों ने अपने हक अपनी काबिलियत से और एक जुट होकर मर्दों से हासिल कर लिए हैं।

महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे-भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती, बल्कि उन्हें अपने अंदर नारीचेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है।
  • महिला संगठन

भारत में जब भी महिलाओ के खिलाफ होने वाले शारीरिक या यौन हिंसा के आकडे सामने आते है तो वे काफी डरावने होते है। हलाकि अब ऐसे कई संगठन सामने आये है जो महिलाओ को हिंसा के इस निरंतर खतरे से निपटने में मदद करने और हमारे देश को महिलाओ के लिए सुरक्षित बनाने की दिशा में कम कर रही है। ये संगठन नितिगत बदलाओ की शुरुआत करने के साथ जनता को शिक्षित करने की इरादे से जागरूकता अभियन भी चलाते है।

  • राष्ट्रीय महिला आयोग  

भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत 31 जनवरी 1992 में गठित एक सावधिक निकाय है। यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओ के सवैधानिक हितो और उनके लिए क़ानूनी सुरक्षा उपायों को लागु करती है।

संशोधनों की सिफारिश करना तथा ऐसे कानूनों में किसी प्रकार की कमी, अपर्याप्तता अथवा कमी को दूर कारने के लिए उपचारात्मक उपाय करना है।

शिकायतों पर विचार करने के साथ-साथ महिलाओ के अधिकारों के वचन से सम्बंधित मामलों में अपनी ओर से ध्यान देना तथा उचित प्राधिकारियों के साथ मुददे उठाना सामिल है।

भेदभाव और महिलाओ के प्रति अत्याचार के कारण उठाने वाली विशिष्ट समस्याओ अथवा परिस्थितियो की सिफारिश करने के लिए अवरोधी की पहचना करना, महिलाओ के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी और सलाह देना तथा उनमे की गयी प्रगति का मूल्यांकन करना इनके प्रमुख कार्य है।

  • आजाद फाउन्डेशन

आजाद फाउन्डेशन उन महिलाओ के लिए काम करता है जो अपने पति पर वित्तीय निर्भरता के चलते अपमानजनक रिश्ते में बनी हुयी है। नई दिल्ली स्थित यह संगठन महिलाओ को उन व्यवसायों ने ट्रेनिंग मुहैया करता है। जो पारम्परिक रूप से उनके लिए बंद रहे है। इसके जरिये ये उन महिलाओ को वित्तीय स्वतन्त्र हासिल करने में मदद करता है

  • भारतीय ग्रामीण महिला संघ

भारतीय ग्रामीण महिला संघ या BGMS (नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ रुरल वुमेन इंडिया) की स्थापना 1955 में हुयी थी। यह संगठन किसी राजनितिक संस्था या पंथ से जुडा हुआ नहीं है। और इसकी 14 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशो में उपस्थिति है इस संगठन का संबंध एसोसिएशन कंट्री वुमेन ऑफ़ द वर्ल्ड से है। जो ग्रामीण महिलाओ के लिए दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है और यूनेस्को, WHO और ILO जैसी प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को परामर्श देने का कम करती है। जिन महिलाओ को घरो से निकाल दीया जाता है, जो अपने पति, ससुराल या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा सताई हुयी है और खुद को बिना किसि घर के पाती है BGMS उन्हें रहने के लिए घर मुहैया कराता है। इन महिलाओ को व्यावसायिक प्रशिक्षण और नौकर देकर आत्मनिर्भर बनाने में मदद किया जाता है।

महिला संगठन में पुरुषो की उपस्थिति बढ़ाना

कई बार ऐसी खबरे आती है की कुछ महिलाओ के द्वारा झूठे आरोप लगाये जाते है। तो एक महिला संगठन महिला के बारे में महिला के आनुसार ही सोच पाती है तो कई बार ओ पुरुषो पर शोषण का कम कर जाता है। लेकिन यदि महीअल संगठन में कुछ पुरुष भी रहेंगे तो पुरुष, पुरुष के विषय में जल्दी समझ पायेगे तो वह महिला संगठनो को बता पाएंगे की सच क्या है और झूट क्या है। क्योंकि महिला सशक्तिकरण का अभिप्राय पुरुषो का कमजोर करने का बिलकुल भी नही है। हमारे देश में कई सारे महिला संगठन है। जहा पर पुरुषो की कोई उपस्थिति नही है जैसे की महिला आयोग तो महिला आयोग में पुरुष होने चाहिए क्योकि महिला सशक्तिकरण का मतलब पुरुषो को नकारना थोड़ी है। महिला सशक्तिकरण का मतलब बराबरी की बात चीत होगी।

तो कई महिला संगठनो में  पुरुषो की उपस्थिति जरुरी है ताकि महिला सशक्तिकरण कही शोषण का कार्य न कर बैठे हम किसी एक समूह को मजबूत करने के आड़ में दुसरे को कमजोर न कर बैठे।

निष्कर्ष

महिलाओ की सुधारो की दिशा में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है। परन्तु अभी भी आर्थिक, राजनितिक व सामाजिक क्षेत्रो में महिलाए पुरुषो के मुकाबले पीछे है। सामाजिक जागरूकता के माध्यम से कार्य बल में उनकी भागीदारी में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है।

जिस तरह से भारत आज दुनिया के सबसे तेज आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है। उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो समाज की पितृसत्तामक और पुरुष युक्त व्यवस्था है। यह बहुत आवश्यक है कि हम महिलाओं के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाए। महिला सशक्तिकरण महिलाओं को वह मजबूती प्रदान करता है, जो उन्हें उनके हक के लिए लड़ने में मदद करता है। हम सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है। महिलाएँ अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है।

किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी

वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है। लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है।

[social-share-display display="1713108205" force="true"]
Study Discuss
Logo